पानी प्यावत क्या फिरो, घर घर सायर बारि ।
तृषावंत जो हो गया, पीवैगा झष मारि ।
हंसा मोती बिकनिया, कंचन थार भराए ।
जाको मर्म न जानहीं, ताको काह कराए ।
हंसा बर्न सुबर्न तू, क्या बरनूँ मैं तोहिं ।
तरिवर पौ पहेलि हो, तबै सराहूँ तोहिं ।
हंसा तूँ तो सबल था, हलकी अपनी चाल ।
रंग कुरंगी रंगिया, किया और लगवार ।
हंसा सरवर तजि चले, देही परगै सुन्ना ।
कहैं कबीर पुकारि के, तेही दर तेहि थुन्न ।
हंसा बक यक रंग हो, चरैं हरियरे ताल ।
हंस क्षीरते जानिये, बकहिं धरैंगे काल ।
काहे हरिनी दूबरी, येही हरियरे ताल ।
लक्ष अहेरी एक मृगा, केतिक टारों भाल ।
तीन लोक भौ पींजरा, पाप पुन्य भे जाल ।
सकल जीव सावज भये, एक अहेरी काल ।
लोभै जन्म गवाँइया, पापै षाया पुन्न ।
साधी सो आधी कहैं, तापर मेरा षुन्न ।
आधी साषी सिर षडी, जो निरुवारी जाए ।
क्या पंडित की पोथिया, राति दिवस मिलि गाए ।
पांच तत्व का पूतरा, जुक्ति रची मैं काव ।
मैं तोहिं पूछौं पंडिता । सब्द बडा की जीव ।
पांच तत्व का पूतरा । मानुष धरिया नाँव ।
एक कला के बीछुरे । बिकल भया सब ठाँव ।
रंगहि से रंग ऊपजै । सब रंग देषा एक ।
कौन रंग है जीव का । ताकर करहु विबेक ।
जाग्रत रूपी जीव है, सब्द सोहागा सेत ।
जर्दबुन्द जल कूकुही, कहैं कबिर कोइ देष ।
पांच तत्व लै ई तन कीन्हा, सो तन लै काहि लै दीन्हा ।
करमहि के बस जीव कहत हैं, कर्महि के जिव दीन्हा ।
पांच तत्व के भीतरे, गुप्त वस्तु अस्थान ।
विरल मर्म कोई पाइहैं, गुरु के सब्द प्रमान ।
सून्य तषत अडि आसना, पिंड झरोषे नूर ।
ताके दिल में हौं बसों, सेना लिये हजूर ।
हृदया भीतर आरसी, मुष देषा नहिं जाय ।
मुष तो तबही देषिहौ, जब दिल दुबिधा जाय ।
ऊंचे गांव पहाड पर, औ मोटे की बाँह ।
कबीर अस ठाकुर सेइये, उबरिय जाकी छांह ।
जेहि मारग गये पंडिता, तेई गये बहीर ।
ऊँची घाटी राम की, तेहि चढि रहा कबीर ।
हे कबीर तैं उतरि रहु । समल परोहन साथ ।
संमल घटै औ पगु थकै । जीव बिराने हाथ ।
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