शनिवार, मई 01, 2010

ग्यारहवां बारहवां कहरा


अथ ग्यारहवां कहरा

ननदी गे तै विषम सोहागिनि, तैं निदले संसारा गे ।
आवत देखि एक संग सूती, तैं अरु खसम हमारा गे ॥
मोरे बाप कि दोय मेहरिया, मैं अरु मोर जिठानी गे ।
जब हम ऐलि रसिक के जग में, तबहिं बात जग जानी गे ॥
माई मोर मुवल पिता के संगहि, सर रचि मुवल संघाता गे ।
अपनो मुई और ले मुवली, लोग कुटुम्ब संग साथा गे ॥
जौ लौं सांस रहै घट भीतर, तौ लग कुशल परैहै गे ।
कह कबीर जब स्वांस निसरि गै, मन्दिर अनल जरैहै गे ॥

अथ बारहवां कहरा

या माया रघुनाथ की बौरी खेलन चली अहेरा हो ।
चतुर चिकनिया चुनि चुनि मारै, काहु न राखै नेरा हो ॥
मौनी वीर दिगम्बर मारे, ध्यान धरंते योगी हो ।
जंगल में के जंगम मारे, माया किनहू न भोगी हो ।
वेद पढ़ंता पांडे मारे, पूजा करते स्वामी हो ।
अर्थ विचारे पंडित मारे, बांध्यो सकल लगामी हो ॥
श्रंगी ऋषि वन भीतर मारे, शिर ब्रह्मा के फ़ोरी हो ।
नाथ मछंदर चले पीठ दै, सिंह लहू में वौरी हो ॥
साकठ के घर कर्ता धर्ता, हरि भक्तन की चेरी हो ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ज्यों आवै त्यों फ़ेरी हो ॥

इति कहरा सम्पूर्ण

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।