शब्द 94
कहो निरंजन कौनी बानी ।
हाथ पांव मुष स्रवन जीभ बिनु काकहि जपहु हो प्रानी ।
ज्योतिहि ज्योति ज्योति जो कहिये ज्योति कवन सहिदानी ।
ज्योतिहि ज्योति ज्योति दै मारै तब कहाँ ज्योति समानी ।
चार बेद ब्रह्मै जो कहिया उनहुँ न या गति जानी ।
कहैँ कबीर सुनो हो संतो बूझो पंडित ग्यानी ।
शब्द 95
को अस करै नगर कोट वरिया मांस फैलाय गीध रषवरिया ।
मूस भौ नाव मंजार कँडिहरिया सोवै दादुर सर्प पहरुवा ।
बैल बियाय गाइ भइ बांझी बछरा दुहिया तीनि तीनि साझी ।
नित उठि सिंह सियार सो जूझै कबिरा के पद बिरला बूझै ।
शब्द 96
काको रोओगे बहुतेरा बहुतक मुअल फिरल नहिं फेरा ।
हम रोया तब तुम न सँभारा, गर्भ बास की बात बिचारा ।
अब तै रोया क्या तैं पाया, केहि कारन अब मोहि रोवाया ।
कहैं कबीर सुनो भाई सन्तो, काल के बसहि परो मत कोई ।
शब्द 97
अल्ला राम जीव तेरी नाईँ, जा पर मेहर होहु तुम साइँ ।
क्या मूडी भूमी सिर नाये, क्या जल देह नहाये ।
षून करै मसकीन कहावै, औगुन रहत छिपाये ।
क्या उजुब जप मंजन कीये, क्या मसजिद सिर नाये ।
हृदय कपट निमाज गुजारे क्या हज मक्के जाये ।
हिंदू ब्रत एकादसि चौबिस तीस रोजा मुसलमाना ।
ग्यारह मास कहो किन टारे एक महीना आना ।
जो षुदाय मसजीद बसतु हैं और भुलुक केहि केरा ।
तीरथ मूरत राम निवासी दुइ में किनहु न हेरा ।
पूरब दिसों में हरि का बासा पच्छिम अलह मुकामा ।
दिल में षोजि दिलहि मा षोजो इहै करीमा रामा ।
बेद किताब कहो किन झूठा झूठा जौ न विचारे ।
सब घट एक एक कै लषै मैं दूजा करि मारै ।
जेते औरत मर्द उपानी सो सब रूप तुम्हारा ।
कबीर पोंगरा अलह राम का सो गुरु पीर हमारा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें