घर कबीर का सिषर पर, जहां सलेहली गैल ।
पाँव न टिकै पिपीलका, षल को लादै बैल ।
बिनु देषे वह देस की, बात कहै सो कूर ।
आपै षारी षात है, बेचत फिरै कपूर ।
सब्द सब्द सब कोइ कहे, ओ तो सब्द बिदेह ।
जिभ्या पर आवै नहीं, निरषि परषि करि लेह ।
परबत ऊपर हर बहे । घोडा चढि बसे गांव ।
बिन फुल भैंरा रस चहै । कहु बिरवा को नाँव ।
चंदन बास निवारहू । तुझ कारन बन काटिया ।
जीवत जीव जनि मारहू । मूये सबै निपातिया ।
चंदन सर्प लपेटिया । चंदन काह कराय ।
रोम रोम बिस भीनिया । अमृत कहां समाय ।
जौ मोदाद समसांन सील सबै रूप समसान ।
कहैं कबीर सावज गनिहि तबकी देषि भुकान ।
गही टेक छोडे नहीं । जीभ चोंच जरि जाए ।
ऐसा तप्त अंगार है । ताहि चकोर चबाए ।
चकोर भरोसे चंद के । निगले तप्त अंगार ।
कहैं कबीर डाटै नहीं । ऐसी वस्तु लगार ।
झिलमिल झगरा झूलते, बाकी छुटे न काहु ।
गोरष अटके कालपुर, कौन कहावै साहु ।
गोरष रसिया जोग के, मुये न जारी देह ।
मास गली माटी मिली, कोरी मांजी देह ।
बनते भागि बिहडे परा । करहा अपनी बान ।
बैदन करहा कासों कहै । को करहा के जान ।
बहुत दिवस ते हींडिया । सून्य समाधि लगाय ।
करहा पडिगा गाढ में । दूरि परा पछिताय ।
कबिरा भर्म न भाजिया । बहुबिधि धरिया भेष ।
सांई के परिचावते । अंतर रह गई रेष ।
बिनु डांटे जग डांटिया । सोरठ परिया डांट ।
बाट निहारा लोभिआ । गुरुते मीठी षांड ।
मलयागिर के बास में, बृक्ष रह सब गोए ।
कहबे को चंदन भया, मलयागिर ना होए ।
मलयागिर के बास में, बेधा ढाक पलास ।
बेना कबहु न बेधिया, जुग जुग रहिया पास ।
चलते चलते पगु थके, नगर रहा नौ कोस ।
बीचहि में डेरा परा, कहो कौन को दोस ।
झालि परे दिन आथये, अंतर परिगे सांझ ।
बहुत रसिक के लागते, बेस्या रहगै बांझ ।
मन कहै कब जाइये, चित कहै कब जांव ।
छव मास के हींडते, आध कोस पर गांव?
गिरही तजि के भये उदासी, तप को बनषंड जाए ।
चोली थाकी मारिया, बेरइन चुनि चुनि षाए ।
राम नांम जिन चीन्हिया, झीना पिंजर तासु ।
नैन न आवै नीँदरी, अंग न जामे मासु ।
जो जन भीजै राम रस, बिगसित कबहुं न रूष ।
अनुभव भाव ना दरस हीं, ते नर सुष न दूष ।
काटे आम न मौरसी, फाटे जुटे न कान ।
गोरष पारस परसै बिना, कौने को नुकसान ।
पारस रूपी जीव है । लोह रूप संसार ।
पारस ते पारस भया । परष भया टकसार ।
प्रेम पाट का चोलना । पहिर कबीरा नाच ।
पानिप दीन्हो तासु को । तन मन बोलै सांच ।
दर्पन केरी गुफा में, सोनहा पैठा धाए ?
देषि प्रतिमा आपनी, भूकि भूकि मरि जाय ।
ज्यों दर्पन प्रतिबिंब देषिये, आप दुहुनमा सोए ।
या तत ते वा तत होवै, याही से वह होए ।
जोबन सायर सूझते । रसिया लाल कराए ।
अब कबीर पांजी परे । पन्थी आवै जाए ।
1 टिप्पणी:
मेरा ब्लागिंग उद्देश्य गूढ रहस्यों को
आपस में बांटना और ग्यानीजनों से
प्राप्त करना भी है..इसलिये ये आवश्यक नहीं
कि आप पोस्ट के बारे में ही कमेंट करे कोई
दुर्लभ ग्यान या रोचक जानकारी आप सहर्ष
टिप्पणी रूप में पोस्ट कर सकते हैं ..आप सब का हार्दिक
धन्यवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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