मंगलवार, मई 11, 2010

मानुस बेचारा क्या करे


आगे सीढी सांकरी पाछे चकनाचूर ।
परदा तरकी सुंदरी रही धका से दूर ।

संसारी समय बिचारि क्या गिरही क्या योग ।
औसर मारे जात हैं चेत बिराने लोग ।

संसय सब जग षन्डिया । संसय षन्डै कोए ।
सन्सय षन्डै सो जना । जो सब्द बिबेकी होए ।

बोलन है वह भांति का । नैन कछू ना सूझ ।
कहैं कबीर विचार के । घट घट बानी बूझ ।

मूल गहे ते काम है । तै मत भर्म भुलाए ।
मन सायर मनसा लहरि । बहि कतहूं मति जाए ।

भंवर बिलंमे बाग में । बहु फूलन की बास ।
जीव बिलंमे बिसय में । अंतहु चलै निरास ।

भैंर जाल बक जाल है । बूडे बहुत अचेत ।
कहैं कबीर ते बांचि हैं । जाके हृदय बिवेक ।

तीन लोक तीडी भई उड जो मन के साथ ।
हरिजन हरि जाने बिना परे काल के हाथ ।

नाना रंग तरंग है । मन मकरंद असूझ ।
कहैं कबीर बिचार के । अकिल कला लै बूझ ।

बाजीगर का बांदरा ऐसा जीव मन साथ ।
नाना नाच नचाय के राषे अपने हाथ ।

ई मन चंचल चोर । ई मन सुद्ध ठगहार ।
मन मन करि सुर नर मुनि जहंडे । मन के लक्ष दुआर ।

बिरह भुअंगम तन डसो मंत्र न मानै कोए ।
राम बिजोगी ना जिये जिये तो बाउर होए ।

राम बिजोगी बिकल तन इन्ह दुषवे मत कोय ।
छूवत ही मरि जांयँगे ताला बेली होए ।

बिरह भुवंगम पैठि के कीन्ह करेजा घाव ।
साधन अंग न मोरि हैं ज्यों भावै त्यों षाव ।

कडक करेजे गडि रहा बचन वृक्ष की फांस ।
निकसाये निकसै नहीं रही सो काहू गाँस ।

काला सर्प सरीर में । षाइनि सब जग झार ।
बिरले ते जन बाँचि हैं । रामहिं भजै बिचार ।

काल षडा सिर ऊपरे । जागु बिराने मीत ।
जाके घर है गैल में । सो क्यों सोवे निस्चीत ।

कलकाटी काला घुना जतन जतन घुन षाय ।
काया मध्ये काल बस मर्म न कोई पाय ।

मन माया की कोठरी । तन संसय का कोट ।
विषहर मंत्र माने नहीं । काल सर्प की चोट ।

मन माया तो एक है । माया मनहिं समाय ।
तीन लोक संसय परी । काहि कहों समुझाय ।

बेडा दीन्हा षेत को । षेतहि बेडा षाय ।
तीन लोक संसय परी । मैं काहि करों समुझाय ।

मन सायर मनसा लहरि । बूडे बहुत अचेत ।
कहैं कबीर ते बांचि हैं । जाके हृदय विवेक ।

सायर बुद्धि बनाय के । बाय बिचक्षन चोर ।
सारी दुनिया जहडै गई । कोई न लागा ठौर ।

मानुस होके न मुआ मुआ सो डांगर ढोर ।
एकौ जीव ठौर नहिं लागा भया सो हाथी घोर ।

मानुस ते बड पापिया । अक्षर गुरुहि न मान ।
बार बार बन कूकुही । गर्भ धरे औधान ।

मानुस बेचारा क्या करे । कहे न षुले कपाट ।
सोनहा चौक बैठाय के । फिर फिर ऐपन चाट ।

मानुस बेचारा क्या करे । जाके सून्य सरीर ।
जो जिव झांकि न ऊपजै । तो काहि पुकार कबीर ।

4 टिप्‍पणियां:

mukta mandla ने कहा…

मेरा ब्लागिंग उद्देश्य गूढ रहस्यों को
आपस में बांटना और ग्यानीजनों से
प्राप्त करना भी है..इसलिये ये आवश्यक नहीं
कि आप पोस्ट के बारे में ही कमेंट करे कोई
दुर्लभ ग्यान या रोचक जानकारी आप सहर्ष
टिप्पणी रूप में पोस्ट कर सकते हैं ..आप सब का हार्दिक
धन्यवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com

Pawan Kumar ने कहा…

आपकी पोस्ट पढ़ कर एक दम ऐसे संसार में हम चले गए जो सनातन संस्कृति का उदघोष करता है......बहुत पवित्र प्रस्तुति...नमन !

कविता रावत ने कहा…

Aapka pryas saraniya hai...Aaj bhi puratan sahitya ki prashangikta kayam hai..... Yadhi use samjhne-padhne waale bahut kam hai...
Saartha prayas ke liye bahut dhanyavaad.

Eskay Zee ने कहा…

Bahut azeeb, saras, rahasyapooran katha hai.

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।