शनिवार, मई 01, 2010

विप्रमतीसी


विप्रमतीसी प्रारम्भः

सुनहु सबन मिलि विप्र मतीसी, हरि बिनु बूङी नाव भरी सी ।
ब्राह्मणा है कै ब्रह्म न जानैं, घर में यज्ञ प्रतिग्रह आनैं ॥
जे सिरजा तेहि नहिं पहिचानैं, कर्म भर्म लै बैठि बखानैं ।
ग्रहण अमावस सायर पूजा, स्वाती के पात परहु जनि दूजा ॥
प्रेत कर्म मुख अंतर वासा, आहुति सहित होम की आसा ।
कुल उत्तम कुल माँह कहावैं, फ़िरि फ़िरि मध्यम कर्म करावैं ॥
कर्म अशुचि उच्छिष्टै खाहीं, मति भरिष्ट यम लोकहि जाहीं ।
सुत दारा मिलि जूठो खाहीं, हरि भगतन की छूत कराहीं ॥
न्हाय खोरि उत्तम ह्वै आवैं, विष्णु भक्त देखे दुख पावैं ।
स्वारथ ला गिरहे वे आढ़ा, नाम लेत जस पावक डाढ़ा ॥
राम कृष्ण की छोङिनि आसा, पढ़ि गुणि भये कृतिम के दासा ।
कर्म करहिं कर्महि को धावैं, जो पूछे तेहि कर्म दृढ़ावैं ॥
निष्कर्मी कै निन्दा कीजै, करै कर्म ताही चित दीजै ।
अस भगती भगवत की लावैं, हरिणाकुश को पन्थ चलावैं ॥
देखहु कुमति नरक परगासा, बिनु लखि अंतर किरतम दासा ।
जाके पूजे पाप न ऊङै, नाम सुमिरते भव में बूङे ॥
पाप पुण्य कै हाथहि पासा, मारि जगत को कीन्ह बिनासा ।
ये बहनी दोऊ बहनि न छांङै, यह ग्रह जारैं वह ग्रह मांङै ॥
बैठे ते घर साहु कहावै, भितर भेद मन मुसहि लगावै ।
ऐसी विधि सुर विप्र भनी जै, नाम लेत पंचासन दीजै ॥
ऊँच नीच कहु काहि जो हारा, बूङि गये नहिं आपु संभारा ।
ऊँच नीच है मध्यम बानी, एकै पवन एक है पानी ॥
एकै मटिया एक कुम्हारा, एक सबन का सिरजनहारा ।
एक चाक बहु चित्र बनाया, नाद बिंदु के बीच समाया ॥
व्यापी एक सकल की ज्योती, नाम धरै क्या कहिये मोती ।
राक्षस करणी देव कहावै, वाद करै भव पार न पावै ॥
हंस देह तजि न्यारा होई, ताकी जाति कहै धौं कोई ।
श्याम सुपेद कि राता पियरा, अवरण वरण कि ताता सियरा ॥
हिन्दू तुरक कि बूढ़ा बारा, नारि पुरुष मिलि करौ विचारा ।
कहिये काहि कहा नहिं माना, दास कबीर सोई पहिचाना ॥



साखी
वहा अहै बहि जातु है, कर गहि ऐंचहु ठौर ।
समुझाये समुझै नहीं, दे धक्का दुइ और ॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।