अथ पांचवां कहरा
राम नाम भजु राम नाम भजु, चेति देखु मन माहीं हो ।
लक्ष करोरि जोरि धन गाङे, चले डोलावत वाहीं हो ॥
दाऊ दादा औ परपाजा, उइ गाङे भुइ भांङे हो ।
अंधरे भये हिया की फ़ूटी, तिन काहे सब छांङे हो ॥
ई संसार असार को धन्धा, अंतकाल कोइ नाहीं हो ।
उपजत बिनशत वार न लागै, ज्यों बादर की छांहीं हो
॥
नाता गोता कुल कुटुम्ब सब, तिनकी कवनि बङाई हो ।
कह कबीर यक राम भजे बिन बूङी सब चतुराई
हो ॥
अथ छठवां कहरा
राम नाम बिनु राम नाम बिनु, मिथ्या जन्म गंवाई हो ।
सेमर सेइ सुवा जो जहङे, ऊन परे पछिताई हो ॥
जैसे मदिप गांठि अर्थै दै, घरहु की अकिल गंवाई हो ।
स्वादे उदर भरत धौं कैसे, ओसे प्यास न जाई हो ।
द्र्व्यक हीन कौन पुरुषारथ, मनही माहँ तवाई हो ॥
गांठी रतन मर्म नहिं जानेहु, पारख लीन्ही छोरी हो ।
कह कबीर यह अवसर बीते, रतनन मिलै बहोरी हो ॥
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