अथ दूसरी चाचरि
जारहु जग को नेहरा मन बौराहो ।
जामें शोक संताप समुझ मन बौराहो ॥
काल बूत को हस्तिनी मन बौराहो ।
चित्र रचौ जगदीश समुझ मन बौराहो ॥
बिना नेइ को देवघरा मन बौराहो ।
बिन कहगिल कै ईंट समुझ मन बौराहो ॥
तन धन सो क्या गर्व समुझ मन बौराहो ।
भसम क्रीम की साजु समुझ मन बौराहो ॥
काम अन्ध गज वश परे मन बौराहो ।
अंकुश सहिया शीश समुझ मन बौराहो ॥
ऊँच नीच जानेहु नहीं मन बौराहो ।
घर घर नाचेहु द्वार समुझ मन बौराहो ॥
मरकट मूठी स्वाद की मन बौराहो ।
लीन्हों भुजा पसार समुझ मन बौराहो ॥
छूटन की संशय परी मन बौराहो ।
घर घर खायो डांग मन बौराहो ॥
ज्यों सुवना नलिनी गह्यो मन बौराहो ।
ऐसा मर्म विचार समुझ मन बौराहो ॥
पढ़े गुने का कीजिये मन बौराहो ।
अंत विलैया खाय समुझ मन बौराहो ॥
सूने घर का पाहुना मन बौराहो ।
ज्यों आवै त्यों जाय समुझ मन बौराहो ॥
नहाने को तीरथ घनी मन बौराहो ।
पूजै का बहुदेव समुझ मन बौराहो ॥
बिन पानी नर बूङिया मन बौराहो ।
तुम टेकहु राम जहाज समुझ मन बौराहो ॥
कह कबीर जग भर्मिया मन बौराहो ।
तुम छोङे हरि का सेव समुझ मन बौराहो ॥
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