शनिवार, मई 01, 2010

कहाँ तव आदम कहां तव तव्वा


शब्द 98

आव बे आव मुझे हरि नामा, और सकल तजु कौने कामा ।
कहाँ तव आदम कहां तव तव्वा, कहां तव पीर पैगम्बर हुवा ।
कहाँ तव जिमी कहां असमान, कहाँ तव बेद किताब कुरान ।
जिन दुनिया में रची मसजीद, झूठा रोजा झूठी ईद ।
सच्चा एक अल्लह को नाम, जाको नै नै करहु सलाम ।
कहु धौ भिस्त कहां से आई, किसके कहे तुम छुरी चलाई ।
करता किरतम बाजी लाई, हिंदू की राह चलाई ।
कहाँ तव दिवस कहां तव राती, कहाँ तव किरतम की उत्पाती ।
नहिं वाके जात नहीं वाके पाँती, कहे कबीर वाके दिवस न रबपती ।

शब्द 99

अब कहाँ चलेहु अकेले मीता, उठहु न करहु घरहु का चिंता ।
षीर षाँड घृत पिंड संवारा, सो तन लै बाहर डारा ।
जो सिर रचि बाँध्यो पागा, सो सिर रतन बिडारत कागा ।
हाड जरै जस जंगल की लकडी, केस जरैं जस घाम की पबपली ।
आवत संग न जात संघाती, काह भये दल बाँधल हाथी ।
माया के रस लेइ न पाया, अंतर जम बिलारि होए धाया ।
कहैँ कबीर नर अजहुँ न जागा, जम का मुगदर सिर बिच लबपगा ।

शब्द 100

देषहु लोगो हरि का सगाई, माय धरी पुत्र धिये संग जाई ।
सासु ननद मिलि अचल चलाई, मादरिया गृह बैठी जाई ।
हम बहनोई राम मोर सारा, हमहि बाप हरि पुत्र हमारा ।
कहैं कबीर हरी के बूता, राम रमे ते कुकुरी के पूता ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।