शब्द 98
आव बे आव मुझे हरि नामा, और सकल तजु कौने कामा ।
कहाँ तव आदम कहां तव तव्वा, कहां तव पीर पैगम्बर हुवा ।
कहाँ तव जिमी कहां असमान, कहाँ तव बेद किताब कुरान ।
जिन दुनिया में रची मसजीद, झूठा रोजा झूठी ईद ।
सच्चा एक अल्लह को नाम, जाको नै नै करहु सलाम ।
कहु धौ भिस्त कहां से आई, किसके कहे तुम छुरी चलाई ।
करता किरतम बाजी लाई, हिंदू की राह चलाई ।
कहाँ तव दिवस कहां तव राती, कहाँ तव किरतम की उत्पाती ।
नहिं वाके जात नहीं वाके पाँती, कहे कबीर वाके दिवस न रबपती ।
शब्द 99
अब कहाँ चलेहु अकेले मीता, उठहु न करहु घरहु का चिंता ।
षीर षाँड घृत पिंड संवारा, सो तन लै बाहर डारा ।
जो सिर रचि बाँध्यो पागा, सो सिर रतन बिडारत कागा ।
हाड जरै जस जंगल की लकडी, केस जरैं जस घाम की पबपली ।
आवत संग न जात संघाती, काह भये दल बाँधल हाथी ।
माया के रस लेइ न पाया, अंतर जम बिलारि होए धाया ।
कहैँ कबीर नर अजहुँ न जागा, जम का मुगदर सिर बिच लबपगा ।
शब्द 100
देषहु लोगो हरि का सगाई, माय धरी पुत्र धिये संग जाई ।
सासु ननद मिलि अचल चलाई, मादरिया गृह बैठी जाई ।
हम बहनोई राम मोर सारा, हमहि बाप हरि पुत्र हमारा ।
कहैं कबीर हरी के बूता, राम रमे ते कुकुरी के पूता ।
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