अथ नवां कहरा
ऐसन देह निरापन बौरे, मुये छुवै नहिं कोई हो ।
डंडक डोरवा तोरि लै आइनि, जो कोटिक धन होई हो ॥
उरघ श्वासा उपंजग तरासा, हंकराइन परिवारा हो ।
जो कोई आवै वेगि चलावै, पल यक रहन न हारा हो ॥
चंदन चूर चतुर सब लैपैं, गल गजमुक्ता हारा हो ।
चोंचन गीध मुये तन लूटै, जंबुक बोदर फ़ारा हो ॥
कहै कबीर सुनो हो सन्तौ, ज्ञानहीन मतिःइना हो ।
यक यक दिन यह गति सबही की, कहा राव का दीना हो ॥
अथ दशवां कहरा
हौं सबहिन में हौं नाहीं, मोहि विलग विलग विलगाई
हो ।
ओढ़न मेरे एक पिछौरा, लोग बोलहिं यकताई हो ॥
एक निरन्तर अंतर नाहीं, ज्यों घट जल शशि झांई हो
।
यक समान कोई समुझत नाहीं, जरा मरण भ्रम जाई हो ॥
रैनि दिवस मैं तहँवो नाहीं, नारि पुरुष समताई हो ॥
ना मैं बालक ना मैं बुढ़ो, ना मोरे चेलिकाई हो ।
तिरविधि रहौं सबन में बरतों, नाम मोर रम राई हो ॥
पठये न जाउँ आने नहिं आऊँ, सहज रहौं दुनियाई हो ।
जोलहा तान बान नहिं जानै, फ़ाट बिनै दश ठाई हो ॥
गुरु प्रताप जिन जैसो भाश्यो, जिन बिरले सुधि पाई हो ।
अनंत कोटि मन हीरा वेध्यो, फ़िटकी मोल न आई हो ॥
सुर नर मुनि वाके खोज परे हैं, किछु किछु कविरन पाई हो
॥
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