शनिवार, मई 01, 2010

नवां दशवां कहरा


अथ नवां कहरा

ऐसन देह निरापन बौरे, मुये छुवै नहिं कोई हो ।
डंडक डोरवा तोरि लै आइनि, जो कोटिक धन होई हो ॥
उरघ श्वासा उपंजग तरासा, हंकराइन परिवारा हो ।
जो कोई आवै वेगि चलावै, पल यक रहन न हारा हो ॥
चंदन चूर चतुर सब लैपैं, गल गजमुक्ता हारा हो ।
चोंचन गीध मुये तन लूटै, जंबुक बोदर फ़ारा हो ॥
कहै कबीर सुनो हो सन्तौ, ज्ञानहीन मतिःइना हो ।
यक यक दिन यह गति सबही की, कहा राव का दीना हो ॥

अथ दशवां कहरा

हौं सबहिन में हौं नाहीं, मोहि विलग विलग विलगाई हो ।
ओढ़न मेरे एक पिछौरा, लोग बोलहिं यकताई हो ॥
एक निरन्तर अंतर नाहीं, ज्यों घट जल शशि झांई हो ।
यक समान कोई समुझत नाहीं, जरा मरण भ्रम जाई हो ॥
रैनि दिवस मैं तहँवो नाहीं, नारि पुरुष समताई हो ॥
ना मैं बालक ना मैं बुढ़ो, ना मोरे चेलिकाई हो ।
तिरविधि रहौं सबन में बरतों, नाम मोर रम राई हो ॥
पठये न जाउँ आने नहिं आऊँ, सहज रहौं दुनियाई हो ।
जोलहा तान बान नहिं जानै, फ़ाट बिनै दश ठाई हो ॥
गुरु प्रताप जिन जैसो भाश्यो, जिन बिरले सुधि पाई हो ।
अनंत कोटि मन हीरा वेध्यो, फ़िटकी मोल न आई हो ॥
सुर नर मुनि वाके खोज परे हैं, किछु किछु कविरन पाई हो ॥

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।