शनिवार, मई 01, 2010

दत्तत्रेय मर्म नहिं जाना


शब्द 88

सावज न होई भाई सावज न होई, वाकी मासु भषै सब कोई ।
सावज एक सकल संसारा, अबिगत वाकी बाता ।
पेट फारि जो देषिए रे भाई, आहि करेज न आता ।
ऐसी वाकी मासु रे भाई, पल पल मासु बिकाई ।
हाड गोड लै धूर पँवारिन, आगि धुंवा नहिं षाई ।
सिर और सीँग कछू नहिं वाके, पूँछ कहां वह पावै ।
सब पंडित मिलि धंधे परिया, कबिरा बनौरा गावै ।

शब्द 89

सुभागे केहि कारन लोभ लागे रतन जन्म षोयो ।
पूरब जन्म भूम्य के कारन बीज काहे को बोयो ।
बुन्द से जिन्ह पिंड सजायो अग्निहि कुंड रहायो ।
जब दस मास मता के गर्भे बहुरि के लागल माया ।
बारहु ते पुनि बृद्ध हुवा जब होनिहार सो होया ।
जब जम ऐहैं बाँधि चलै हैं नैन भरी भरि रोया ।
जीवन की जलि आस राषहू काल धरे हैं स्वासा ।
बाजी है संसार कबीरा चित्त चेति डारो फांसा ।

शब्द 90

संत महंतो सुमिरो सोई । जो काल फांस ते बांचा होई ।
दत्तत्रेय मर्म नहिं जाना । मिथ्या स्वाद भुलाना ।
सलिल को मथिकै घृत को काढिनि । ताहि समाधि समाना ।
गोरष पवन राषि नहिं जाना । जोग जुक्ति अनुमाना ।
रिधि सिधि संजम बहुतेरा । पार ब्रह्म नहिं जाना ।
बसिस्ट स्रेष्ठ विद्रया सम्पूरन । राम ऐसे सिष साषा ।
जाहि राम को कर्त कहिये । तिनहु को काल न राषा ।
हिंदू कहे हमहिं लै जारों । तुर्क कहे मोर पीर ।
दोउ आय दीनन में झगरैं । देषहिं हंस कबीर ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।