शब्द 88
सावज न होई भाई सावज न होई, वाकी मासु भषै सब कोई ।
सावज एक सकल संसारा, अबिगत वाकी बाता ।
पेट फारि जो देषिए रे भाई, आहि करेज न आता ।
ऐसी वाकी मासु रे भाई, पल पल मासु बिकाई ।
हाड गोड लै धूर पँवारिन, आगि धुंवा नहिं षाई ।
सिर और सीँग कछू नहिं वाके, पूँछ कहां वह पावै ।
सब पंडित मिलि धंधे परिया, कबिरा बनौरा गावै ।
शब्द 89
सुभागे केहि कारन लोभ लागे रतन जन्म षोयो ।
पूरब जन्म भूम्य के कारन बीज काहे को बोयो ।
बुन्द से जिन्ह पिंड सजायो अग्निहि कुंड रहायो ।
जब दस मास मता के गर्भे बहुरि के लागल माया ।
बारहु ते पुनि बृद्ध हुवा जब होनिहार सो होया ।
जब जम ऐहैं बाँधि चलै हैं नैन भरी भरि रोया ।
जीवन की जलि आस राषहू काल धरे हैं स्वासा ।
बाजी है संसार कबीरा चित्त चेति डारो फांसा ।
शब्द 90
संत महंतो सुमिरो सोई । जो काल फांस ते बांचा होई ।
दत्तत्रेय मर्म नहिं जाना । मिथ्या स्वाद भुलाना ।
सलिल को मथिकै घृत को काढिनि । ताहि समाधि समाना ।
गोरष पवन राषि नहिं जाना । जोग जुक्ति अनुमाना ।
रिधि सिधि संजम बहुतेरा । पार ब्रह्म नहिं जाना ।
बसिस्ट स्रेष्ठ विद्रया सम्पूरन । राम ऐसे सिष साषा ।
जाहि राम को कर्त कहिये । तिनहु को काल न राषा ।
हिंदू कहे हमहिं लै जारों । तुर्क कहे मोर पीर ।
दोउ आय दीनन में झगरैं । देषहिं हंस कबीर ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें