अथ तीसरा कहरा
राम नाम को सेवहु वीरा, दूरि नहीं दुरि आशा हो ।
और देव का पूजहु बौरे, ई सब झूठी आशा हो ॥
ऊपर के उजरे कह भो बौरे, भीतर अजहूं कारो हो ।
तन को वृद्ध कहा भौ बौरे, ई मन अजहूं वारो हो ॥
मुख के दांत गये का बौरे, अन्दर दांत लोहे के हो ।
फ़िरि फ़िरि चना चबाउ विषय के, काम क्रोध मद लोभे हो ॥
तन की सक्ति सकल घटि गयऊ, मनहिं दिलासा दूनी हो ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, सकल सयानप ऊनी हो ॥
अथ चौथा कहरा
ओढ़न मेरा राम नाम, मैं रामहि को बनिजारा हो
।
राम नाम का करौं बनिज मैं, हरि मोरा हटवारा हो ॥
सहस नाम को करौं पसारा, दिन दिन होत सवाई हो ।
कान तराजू सेर तिन पौवा, डहकिन ढोल बजाई हो ॥
सर पसेरी पूरा करि ले, पासंघ, कतहुं न जाई हो ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, जोरि चले जहडाई हो ॥
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