शनिवार, मई 01, 2010

तीसरा चौथा कहरा


अथ तीसरा कहरा

राम नाम को सेवहु वीरा, दूरि नहीं दुरि आशा हो ।
और देव का पूजहु बौरे, ई सब झूठी आशा हो ॥
ऊपर के उजरे कह भो बौरे, भीतर अजहूं कारो हो ।
तन को वृद्ध कहा भौ बौरे, ई मन अजहूं वारो हो ॥
मुख के दांत गये का बौरे, अन्दर दांत लोहे के हो ।
फ़िरि फ़िरि चना चबाउ विषय के, काम क्रोध मद लोभे हो ॥
तन की सक्ति सकल घटि गयऊ, मनहिं दिलासा दूनी हो ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, सकल सयानप ऊनी हो ॥

अथ चौथा कहरा

ओढ़न मेरा राम नाम, मैं रामहि को बनिजारा हो ।
राम नाम का करौं बनिज मैं, हरि मोरा हटवारा हो ॥
सहस नाम को करौं पसारा, दिन दिन होत सवाई हो ।
कान तराजू सेर तिन पौवा, डहकिन ढोल बजाई हो ॥
सर पसेरी पूरा करि ले, पासंघ, कतहुं न जाई हो ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, जोरि चले जहडाई हो ॥


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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।