अथ द्वितीय बेलि
भल सुस्मृति जहडायहु हो रमैयाराम ।
धोखा कियो विश्वास हो रमैयाराम ॥
सो तो हैं बन सीकसि हो रमैयाराम ।
शिर कै लिये विश्वास हो रमैयाराम ॥
ईतौ हैं विधि भाग हो रमैयाराम ।
गुरू दीन्हों मोहि थापि हो रमैयाराम ॥
गोबर कोट उठायहु हो रमैयाराम ।
परिहरि जैहो खेत हो रमैयाराम ॥
बुधि बल तहाँ न पहुँचे हो रमैयाराम ।
खोज कहाँ ते होय हो रमैयाराम ॥
सुनि मन धीरज भयल हो रमैयाराम ।
मन बढ़ि रहल लजाय हो रमैयाराम ॥
फ़िरि पाछे जनि हेरहु हो रमैयाराम ।
काल बूत सब आप हो रमैयाराम ॥
कह कबीर सुनौ संतौ हो रमैयाराम ।
मति ढिगही फ़ैलाव हो रमैयाराम ॥
अथ बिरुहली
आदि अंत नहिं होत बिरहुली । नहिं जङ
पल्लव पेङ बिरुहली ॥
निशिवासर नहिं होत बिरुहली । पानी पवन न
होत बिरुहली ॥
ब्रह्म आदि सनकादि बिरुहली । कथि गये योग
अपार बिरुहली ॥
मास असाढ़हि शीत बिरुहली । बोइन सातौ बीज
बिरुहली ॥
नित गोङै नित सिंचै बिरुहली । नित नव
पल्लव पेङ बिरुहली ॥
छिछिल बिरुहली छिछिल बिरुहली । छिछिल रही
तिहुँ लोक बिरुहली ॥
फ़ूल एक भल फ़ुलल बिरुहली । फ़ूलि रहल संसार
बिरुहली ॥
ते फ़ुल बंदे भक्त बिरुहली । बांधि कै
राउर जाहि बिरुहली ॥
ते फ़ुलेल हीसंत बिरुहली । डसिगो बेतल
सांप बिरुहली ॥
विषहर मंत्र न मान बिरुहली । गाडुरि बोले
आर बिरुहली ॥
विष की क्यारी बोयो बिरुहली । लोरत का
पछिताय बिरुहली ॥
जन्म जन्म अवतरे बिरुहली । फ़ल यक कनयल
डार बिरुहली ॥
कह कबीर सचु पाय बिरुहली । जो फ़ल चाखहु
मोर बिरुहली ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें