शनिवार, मई 01, 2010

ये जोगिया के उलटा ग्याना


शब्द 66

जोगिया के नगर बसो मत कोई, जो रे बसै सो जोगिया होई ।
ये जोगिया के उलटा ग्याना, कारा चोला नाहीं म्याना ।
प्रगट सो कंथा गुप्ता धारी, तामें मूल सजीवन भारी ।
वो जोगिया की जुक्ति जो बूझै, राम रमै तेहि त्रिभुवन सूझै ।
अमृत बेली छिन छिन पीवै, कहें कबीर जुग जुग जीवै ।

शब्द 67

जो पै बीज रूप भगवाना । तो पंडित का पूछौ आना ।
कहैं मन कहै बुद्धि हंकारा । सत रज तम गुन तीन प्रकारा ।
बिष अमृत फल फलै अनेका । बहुधा बेद कहै तरबेका ।
कहैं कबीर तैं मैं क्या जानो । को धौ छूटल को अरुझानो ।

शब्द 68

जो चरषा जरि जाय बढैया ना मरै ।
मै कातों सूत हजार चरषुला जिन जरै ।
बाबा ब्याह कराय दे अच्छा बरहि ताकहु ।
जौ लों अच्छा बर न मिलै तौ लों तूं ही ब्याहु ।
प्रथमै नगर पहुंच ते परिगौ सोक संताप ।
एक अचम्भौ हमने देषा जो बिटिया ब्याहल बाप ।
समधी क घर लमधी आये आये बहू के भाय ।
गोडे चूल्हा देहि दे चरषा दियो दृढाय ।
देव लोक मरि जायेंगे एक न मरै बढाय ।
यह मन रंजन कारने चरषा दियो दृढाय ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो चरषा लषै न कोय ।
जो यह चरषो लषि परे तो आवागमन न होय ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।