शनिवार, मई 01, 2010

भुतवा के पूजे भुतवा होई


शब्द 104

कैसे तरों नाथ कैसे तरों अब बहु कुटिल भरो ।
कैसी तेरी सेवा पूजा कैसो ध्यान । ऊपर उजर देषो बक अनुमान ।
भाव तो भुवँग देषो अति बिबिचारी । सुरति सचान तेरी मति तो मँजारी ।
अति रे बिरोध देषो अति रे सयाना । छव दरसन देषो भेष लपटाना ।
कहैं कबीर सुनो नर बन्दा डाइनि डिंभ सकल जग षंदा ।

शब्द 105

ये भ्रम भूत सकल जग षाया जिन जिन पूज तीन जहँडाया ।
अंड न पिंड प्रान नहिं देही काटि काटि जिब केतिक देही ।
बकरी मुगरी कीन्ह उछेवा अगिले जन्म उन औसर लेवा ।
कहैं कबीर सुनो नर लोई भुतवा के पूजे भुतवा होई ।


शब्द 106

भैंर उडे बक बैठे आय रैन गई दिवसो चलि जाय ।
हल हल कांपै बाला जीबे ना जानों का करि है पीव ।
काचे बासन टिकै न पानी उडिगै हंस काया कुम्हिलानी ।
काग उडावत भुजा पिरानी कहैं कबीर यह कथा सिरानी ।

शब्द 107

षसम बिनु तेली को बैल भयो ।
बैठत नहीं साधु की संगत नाधे जन्म गयो ।
बहि बहि मरहु पचहु निज स्वारथ जम के दंड सह्यो ।
धन दारा सुत राज काज हित माथे मार गह्यो ।
षसमहि छाडि विषय रंग राते पाप के बीज बयो ।
झूठ मुक्ति नर आस जिवन की प्रेत को जूठन षायो ।
लष चौरासी जीव जन्तु में सायर जात बह्यो ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो स्वान की पूंछ गह्यो ।


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।