रमैनी 64
काया कंचन जतन कराया, बहुत भांति कै मन पलटाया
।
जो सौ बार कहौं समुझाई, तइयो धरै छोडि नहिं जाई ।
जनके कहे जो जन रहि जाई, नवो निधि सिद्धि तिन पाई
।
सदा धर्म तेहि हृदया बसई, राम कसौटी कसतहि रहई ।
जोरि कसावै अंतै जाई, सो बाउर आपुहि बौराई ।
पडिगै फाँसी काल की, करहु आपनो सोच ।
संत निकट ही संत जा, मिल रहै पोचै पोच ।
रमैनी 65
आपन गुन को अवगुन कहहू, इहै अभाग जो तुम न बिचरहू
।
तू जियरा बहुते दुख पाया, जल बिनु मीन कौन सुख पाया?
चात्रिक जल हल आसे पासा, स्वांग धरै भवसागर आसा?
चात्रिक जल हल भरे जौ पासा, मेघ न बरसै चलै उदासा?
राम नाम इहै निज सारा, औरो झूठ सकल संसारा?
हरि उतंग तुम जाति पतंगा, यम घर कियो जीव के संगा ।
किंचित है सपने निधि पाई, हिय न अमाय कहँ धरो छिपाई?
हिय न समाय छोरि नहिं पारा, झूठा लोभ किनहु न बिचारा
।
स्मृति कीन्ह आपु नहिं माना, तरिवर छर छागर होय जाना ।
जीव दुरमति डोले संसारा, तेहि नहिं सूझै वार न पारा
।
अंध भया सब डोलई, कोई न करै विचार ।
कहा हमार माने नहीं, किमि छूटै भ्रम जार ।
रमैनी 66
सोई हित बंधू मोहि भावै, जात कुमारग मारग लावै ।
सो सयान मारग रहि जाई, करै खोज कबहूं न भुलाई ।
सो झूठा जो सुत कहँ तजई, गुरु की दया राम ते भजई ।
किं चित है एक तेज भुलाना, धन सुत देखि भया अभिमाना
।
दिया नखत तन कीन्ह पयाना, मंदिर भया उजार ।
मरिगा सो तो मरि गया, बांचे बाचनहार ।
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