सतगुरू
से सूधा भया, शब्द जु लागा अंग।
उठी
लहरि समुंद की, भीजि गया सब अंग॥
शब्दै
मारा खैंचि करि, तब हम पाया ज्ञान।
लगी
चोट जो शब्द की, रही कलेजे छान॥
सतगुरू
बङे सराफ़ है, परखे खरा रु खोट।
भौसागर
ते काढ़ि के, राखै अपनी ओट॥
सदगुरू
बङे जहाज हैं, जो कोई बैठे आय।
पार
उतारै और को, अपनो पारस लाय॥
सदगुरू
बङे सुनार हैं, परखे वस्तु भंडार।
सुरतिहि
निरति मिलाय के, मेटि डारे खुटकार॥
सतगुरू
के सदके किया, दिल अपने को सांच।
कलियुग
हमसों लङि पङा, मुहकम मेरा बांच॥
सतगुरू
मिलि निर्भय भया, रही न दूजी आस।
जाय
समाना शब्द में, सत्त नाम विश्वास॥
सदगुरू
मोहि निवाजिया, दीन्हा अंमर बोल।
सीतल
छाया सुगम फ़ल, हंसा करैं किलोल॥
सदगुरू
पारस के सिला, देखो सोचि विचार।
आइ
परोसिन ले चली, दीयो दिया सम्हार॥
सदगुरू
सरन न आवही, फ़िरि फ़िरि होय अकाज।
जीव
खोय सब जायेंगे, काल तिहूपुर राज॥
सतगुरू
तो सतभाव है, जो अस भेद बताय।
धन्य
सीष धन्य भाग तिहि, जो ऐसी सुधि पाय॥
सदगुरू
हमसों रीझि कै, कह्यो एक परसंग।
बरषै
बादल प्रेम को, भीजि गया सब अंग॥
हरी भई
सब आतमा, सब्द उठै गहराय।
डोरी
लागी सब्द की, ले निज घर कूं जाय॥
हरी भई
सब आतमा, सतगुरू सेव्या मूल।
चहुंदिस
फ़ूटी वासना, भया कली सों फ़ूल॥
सदगुरू
के भुज दोय हैं, गोविंद के भुज चार।
गोविंद
से कछु ना सरै, गुरू उतारै पार॥
सदगुरू
की दाया भई, उपजा सहज सुभाव।
ब्रह्म
अगनि परजालिया, अब कछु कहा न जाय॥
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