गुरुवार, नवंबर 17, 2011

गुरूदेव को अंग 4

तीन लोक नव खंड में, गुरू ते बङा न कोय।
करता करै न करि सकै, गुरू करै सो होय॥

कोटिन चंदा ऊगहीं, सूरज कोटि हजार।
तीमिर तो नासै नहीं, बिनु गुरू घोर अंधार॥

पहिले बुरा कमाइ के, बांधी विष की पोट।
कोटि करम पल में कटै, आया गुरू की ओट॥

जगत जनायो सकल जिहि, सो गुरू प्रगटे आय।
जिन गुरू आँखिन देखिया, सो गुरू दिया लखाय॥

हरि किरपा तब जानिये, दे मानव अवतार।
गुरू किरपा तब जानिये, छुङावे संसार॥

जाके सिर गुरू ज्ञान है, सोइ तरत भव मांहि।
गुरू बिन जानो जन्तु को, कबहूं मुक्ति सुख नांहि॥

देवी बङा न देवता, सूरज बङा न चंद।
आदि अंत दोनों बङे, कै गुरू कै गोविंद॥

सब कुछ गुरू के पास है, पाइये अपने भाग।
सेवक मन सौंपे रहै, निसदिन चरनौं लाग॥

बहुत गुरू भै जगत में, कोई न लागे तीर।
सबै गुरू बहि जायेंगे, जाग्रत गुरू कबीर॥

वेद पुरान साधु गुरू, सबन कहा निज बात।
गुरू ते अधिक न दूसरा, का हरि का पितु मात॥

ताते सब्द विवेक करि, कीजै ऐसो साज।
जिहि विधि गुरू सों प्रीति रह, कीजै सोई काज॥

सो सो नाच नचाइये, जिहि निबहै गुरू प्रेम।
कहे कबीर गुरू प्रेम बिन, कितहुं कुसल नहि छेम॥

तन मन सीस निछावरै, दीजै सरबस प्रान।
कहैं कबीर दुख सुख सहै, सदा रहै गलतान॥

तबही गुरू प्रिय बैन कहि, सीष पङी चित्त प्रीत।
तो रहिये गुरू सनमुखा, कबहूं न दीजै पीठ॥

स्नेह प्रेम गुरू चरन सों, जिहि प्रकार से होय।
क्या नियरै क्या दूर बस, प्रेम भक्त सुख सोय॥

जिहि विधि सिष को मन बसै, गुरू पद परम सनेह।
कहैं कबीर क्या फ़रक ढिंग, क्या परबत बन गेह।

जो गुरू पूरा होय तो, सीषहि लेय निबाह।
सीष भाव सुत जानिये, सुत ते श्रेष्ठ आहि॥

अबुध सुबुध सुत मात पितु, सबहि करै प्रतिपाल।
अपनी ओर निबाहिये, सिख सुत गहि निज चाल॥

कहैं कबीर गुरू सों मिले, होय नाम परकास।
गुरू मिले सिष भवनिधि तरै, कहैं कृस्न मुनि व्यास॥

सुनिये संतो साधु मिलि, कहैं कबीर बुझाय।
जिहि विधि गुरू सों प्रीति ह्व, कीजै सोइ उपाय॥



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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।