शनिवार, नवंबर 26, 2011

सदगुरूदेव को अंग 3

सदगुरू हमसों भल कही, ऐसी करै न कोय।
तीन लोक जम फ़ंद में, पला न पकङे कोय॥

सदगुरू मिले जु सब मिले, ना तो मिला न कोय।
मातु पिता सुत बंधुवा, ये तो घर घर होय॥

सदगुरू मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय।
भ्रम का भांडा तोङि करि, रहै निराला होय॥

सतगुरू आतम दृष्टि है, इन्द्री टिकै न कोय।
सदगुरू बिन सूझै नहीं, खरा दुहेला होय॥

सदगुरू किरपा फ़ेरिया, मन का औरहि रूप।
कबीर पांचौं पलटिया, मेले किया अनूप॥

सदगुरू की मानै नही, अपनी कहै बनाय।
कहै कबीर क्या कीजिये, और मता मन मांय॥

सदगुरू अम्रित बोइया, सिष खारा ह्वै आय।
नाम रसायन छांङि कर, आक धतूरा खाय॥

सदगुरू महल बनाईया, प्रेम गिलावा दीन्ह।
साहिब दरसन कारनै, सब्द झरोखा कीन्ह॥

सदगुरू तो ऐसा मिला, ताते लोह लुहार।
कसनी दे कंचन किया, ताय लिया ततसार॥

सदगुरू के उपदेस का, सुनिया एक विचार।
जो सदगुरू मिलता नही, जाता जम के द्वार॥

जमद्वारे में दूत सब, करते ऐंचातान।
उनते कबहू न छूटता, फ़िरता चारौं खान॥

चारि खानि में भरमता, कबहू न लगता पार।
सो फ़ेरा सब मिटि गया, सतगुरू के उपकार॥

पाछे लागा जाय था, लोक वेद के साथ।
पैंडे में सदगुरू मिले, दीपक दीन्हा हाथ॥

दीपक दीन्हा तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहना, बहुरि न आवै हट्ट॥

पूरा सदगुरू सेवता, अंतर प्रगटे आप।
मनसा वाचा कर्मना, मिटे जनम के ताप॥

पूरा सदगुरू सेव तूं, धोखा सब दे डार।
साहिब भक्ति कहँ पाईये, अब मानुष औतार॥

पूरा सतगुरू सेवता, सरन पायो नाम।
मनसा वाचा कर्मना, सेवक सारा काम॥

मनहि दिया जिन सब दिया, मन के संग शरीर।
अब देवे को क्या रहा, यौं कथि कहैं कबीर॥


तन मन दिया जु क्या हुआ, निज मन दिया न जाय।
कहैं कबीर ता दास सौं, कैसे मन पतियाय॥

तन मन दिया जु आपना, निज मन ताके संग।
कहैं कबीर सदके किया, सुनि सदगुरू परसंग॥


पारस लोहा परस तें, पलटि गया सब अंग।
संशय सबही मिटि गया, सतगुरू के परसंग॥

सब जग भरमा यौं फ़िरै, ज्यौं रामा का रोज।
सदगुरू सों सुधि जब भई, पाया हरि का खोज॥

थापन पाई थिर भया, सतगुरू दीन्ही धीर।
कबीर हीरा बनिजिया, मान सरोवर तीर॥



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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।