गुरुवार, नवंबर 17, 2011

गुरूदेव को अंग 5

आध सब्द गुरूदेव का, ताका अनंत विचार।
थाके मुनिजन पंडिता, वेद न पावै पार॥

करै दूरि अज्ञानता, अंजन ज्ञान सु देय।
बलिहारी वे गुरून की, हंस उबारि जु लेय॥

हरि सेवा युग चार है, गुरू सेवा पल एक।
ताके पटतर ना तुलै, संतन कियो विवेक॥

ते मन निरमल सत खरा, गुरू सों लागे हेत।
अंकुर सोई ऊगसी, सब्दे बोया खेत॥

भौसागर की त्रास ते, गुरू की पकङो बांहि।
गुरू बिन कौन उबारसी, भौजल धारा मांहि॥

लौ लागी विष भागिया, कालख डारी धोय।
कहैं कबीर गुरू साबु(न) सों, कोइ इक ऊजल होय॥

साबु विचारा क्या करै, गांठै राखै मोय।
जल सो अरसा परस नहिं, क्यौं करि ऊजल होय॥

नारद सरिखा सीष है, गुरू है मच्छीमार।
ता गुरू की निन्द करै, पङै चौरासी धार॥

राजा की चोरी करै, रहै रंक की ओट।
कहैं कबीर क्यों ऊबरै, काल कठिन की चोट॥



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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।