गुरुवार, नवंबर 17, 2011

गुरूदेव को अंग 3

निज मन तो नीचा किया, चरन कमल की ठौर।
कहैं कबीर गुरूदेव बिन, नजरि न आवै और॥

तन मन दीया मल किया, सिर क जासी भार।
जो कबहूँ कहै मैं दिया, बहुत सहै सिर मार॥

तन मन ताको दीजिये, जाको विषया नांहि।
आपा सबही डारि के, राखै साहिब मांहि॥

ऐसा कोई ना मिला, सत्तनाम का मीत।
तन मन सौंपे मिरग ज्यौं, सुने बधिक का गीत॥

जल परमानै माछली, कुल परमानै सुद्धि।
जाको जैसा गुरू मिला, ताको तैसी बुद्धि॥

जैसी प्रीति कुटुंब की, तैसी गुरू सों होय।
कहैं कबीर ता दास का, पला न पकङै कोय॥

सब धरती कागद करूं, लिखनी सब वनराय।
सात समुंद की मसि करूं, गुरू गुन लिखा न जाय॥

बूङा था पर ऊबरा, गुरू की लहरि चमक्क।
बेङा देखा झांझरा, उतरी भया फ़रक्क॥

अहं अगनि निसदिन जरै, गुरू सों चाहै मान।
ताको जम न्यौता दिया, हो हमार मिहमान॥

जम गरजै बल बाघ के, कहैं कबीर पुकार।
गुरू किरपा ना होत जो, तो जम खाता फ़ार॥

अबरन बरन अमूर्त जो, कहो ताहि किन पेख।
गुरू दया ते पावई, सुरति निरति करि देख॥

पढ़ित पढ़ि गुनि पचि मुये, गुरू बिन मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहीं मुक्ति है, सत्त सब्द परमान॥

मूल ध्यान गुरू रूप है, मूल पूजा गुरू पांव।
मूल नाम गुरू वचन है, मूल सत्य सत भाव॥

कहैं कबीर तजि भरम को, नन्हा ह्वै करि पीव।
तजि अहं गुरू चरन गहु, जम सों बाचै जीव॥



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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।