शनिवार, नवंबर 26, 2011

सदगुरूदेव को अंग 4

कबीर हीरा बनिजिया, हिरदै प्रगटी खान।
पारब्रह्म किरपा करी, सदगुरू मिले सुजान॥

निश्चय निधी मिलाय तत, सदगुरू साहस धीर।
निपजी में साझी घना, बाँटनहार कबीर॥

थिति पाई मन थिर भया, सदगुरू करी सहाय।
अनन्य कथा जिव संचरी, हिरदै रही समाय॥

कर कामन सर साधि के, खैंचि जु मारा मांहि।
भीतर बींधे सो मरै, जिय पै जीवै नांहि॥

चेतन चौकी बैठि के, सदगुरू दीन्ही धीर।
निर्भय होय निःसंक भजु, केवल कहैं कबीर॥

जब ही मारा खैंचि के, तब मैं मुआ जानि।
लागी चोट जु सब्द की, गयी कलेजे छानि॥

हँसै न बोलै उनमुनी, चंचल मेल्या मार।
कह कबीर अंतर बिंध्या, सतगुरू का हथियार॥

गूंगा हुआ बाबरा, बहरा हुआ कान।
पांवन ते पंगुला भया, सदगुरू मारा बान॥

ज्ञान कमान रु लौ गुना, तन तरकस मन तीर।
भलक बहै ततसार का, मारा हदफ़ कबीर॥

जो दीसै सो बिनसिहै, नाम धरा सो जाय।
कबीर सोई तत गह्यौ, सतगुरू दीन्ह बताय॥

कुदरत पाई खबर सों, सदगुरू दिया बताय।
भंवर बिलंवा कमल रस, अब उङि अन्त न जाय॥

सत्त नाम छाङौं नहीं, सदगुरू सीख दई।
अविनासी सों परसि के, आतम अमर भई॥

चित चोखा मन निरमला, बुधि उत्तम मति धीर।
सो धोखा नहि विरहही, सदगुरू मिले कबीर॥

बिन सतगुरू बाचै नही, फ़िर बूङे भव मांहि।
भौसागर की त्रास में, सदगुरू पकङे बांहि॥

जीव अधम अति कुटिल है, काहू नही पतियाय।
ताका औगुन मेटि कर, सदगुरू होत सहाय॥

जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव।
कहै कबीर सुन साधवा, करू सदगुरू की सेव॥

काल के माथे पाँव दे, सतगुरू के उपदेस।
साहिब अंक पसारिया, ले चल अपने देस॥

जाय मिल्यौ परिवार में, सुख सागर के तीर।
बरन पलटि हंसा किया, सतगुरू सत्त कबीर॥

जग मुआ विषघर धरै, कहै कबीर पुकार।
जो सतगुरू को पाइया, सो जन उतरै पार॥

अन्धा ऊवट जात है, दोनों लोचन नांहि।
उपकारी सतगुरू मिले, डारै बस्ती मांहि॥

दौङ आय सो दौङसी, पहुँचेगा उन देस।
जाय मिले वा पुरुष कूं, सदगुरू के उपदेस॥

जग में युक्ति अनूप है, साध संग गुरू ज्ञान।
तामें निपट अनूप है, सतगुरू लागा कान॥

सीष हरिन गुरू पारधी, सत्तनाम के बान।

लागा तबही भय मिटा, तबही निकसे प्रान॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।