शब्द 30
भाई रे दो जगदीस कहाँ से आया, कहु कौने बौराया ।
अल्ला राम करीमा केसव, हरि हजरत नाम धराया ।
गहना एक कनक ते गहना, यामें भाव न दूजा ।
कहत सुनत को दुइ करि थापै, एक निमाज एक पूजा ।
वही महादेव वही मुहम्मद ब्रह्मा आदम कहिये ।
को हिन्दू को तुर्क कहावै एक जिमी एक रहिये ।
बेद किताब पढै वै कुतुवा वै मोलाना वै पाँडे ।
बेगर बेगर नाम धराये एक माटी के भाँडे ।
कहैं कबीर ये दूनो भूले रामहि किनहु न पाया ।
वै षसी वै गाय कटावै बादहि जन्म गंवाया ।
शब्द 31
हंसा संसय छूरी कहिया, गइया पिये बछरुवै दुहिया ।
घर घर साउज षेलै अहेरा, पारथ ओटा लेई ।
पानी माँहि तलफि गई भुंभुरी, धूरि हिलोरा देई ।
धरती बरसे बादर भीजै, भीट भये पैराऊँ ।
हंस उडाने ताल सुषाने, चहले बिंदा पाँऊँ ।
जौ लों कर डोलै पग चालै, तौलीँ आस न कीजै ।
कहैं कबीर जेहि चलत न दीसै, तासु बचन क्या लीजै ।
शब्द 32
हंसा हो चित्त चेतु सबेरा, इन्ह परपंच करल बहुतेरा ।
पाषँड रूप रचो इन तिरगुंन, तेहि पाषँड भूलल संसारा ।
घर के षसम बधिक वै राजा, परजा क्या धौ करै बिचारा ।
भक्ति न जाने भक्त कहावैं, तजि अम्रत विष कै लिन सारा ।
आगे बडे ऐसही बूडे, तिनहु न मानल कहा हमारा ।
कहा हमार गांठि दृढ बांधो, निसि बासर रहियो हुसियारा ।
ये कलि गुरू बडे परपंची, डारि ठगोरी सब जग मारा ।
बेद किताब दुइ फंद पसारा, तेहि फंदे परु आप बिचारा ।
कहैं कबीर ते हंसन बिसरै, जेहिमा मिले छुडावनहारा ।
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