शब्द 60
माया मोहहि मोहित कीन्हा, ताते ग्यान रतन हरि लीन्हा ।
जीवन ऐसो सपना जैसो, जीवन सपन समाना?
सब्द गुरु उपदेस दियो ते छाँडेउ परम निधाना ।
ज्योतिहि देष पतंग हूलसै पसू न पेषै आगी ।
काल फांस नर मुग्ध न चेतहु, कनक कामिनी लागी ।
सैयद सेष किताब नीरषै, पंडित सास्त्र बिचारै ।
सतगुरु के उपदेस बिना, ते जानि के जीवहि मारै ।
कहहु बिचार बिकार परिहरहु, तरन तारने सोई ।
कहैं कबीर भगवंत भजो नर, दुतिया और न कोई ।
शब्द 61
मरिहो रे तन क्या लै करि हो । प्राण छुटे बाहर लै धरिहो ।
काया बिगुरचन अनबनि बाटी । कोई जारै कोइ गाडै माटी ।
हिन्दु ले जारै तुर्क ले गाडे । यहि बिधि अंत दुनो घर छाँडे ।
कर्म फांस जम जाल पसारा । जस धीमर मछरी गहि मारा ।
राम बिना नर होइ हो कैसा । बाट मांझ गोबरौरा जैसा ।
कहैं कबीर पाछे पछतैहो । या घर से जब वा घर जैहो ।
शब्द 62
माई मैं दोनों कुल उजियारी ।
बारह षसम नैहरै षायों, सोरह षायो ससुरारी ।
सासु ननद पटिया मिलि बँधलैं, ससुरहि परलैं गारी ।
जारो मार्ग मैं तासु नारि की, सरिवर रचल हमारी ।
जना पांच कोषिया मिलि रषलों, और दुई औ चारी ।
पार परोसिनि करौं कलेवा, संगहि बुधि महतारी ।
सहजहि बपुरी सेज बिछावल, सुतलैं पाँव पसारी ।
आवों न जावों मरों नहिं जीवों, साहेब मेटल गारी ।
एक नाम मैं निजकै गहिलैं, तो छूटल संसारी ।
एक नाम बंदे का लेषों, कहैं कबीर पुकारी ।
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