रमैनी 44
कबहुं न भयउ संग औ साथा, ऐसहि जन्म गंवायउ हाथा ।
बहुरि न पैहो ऐसो थाना, साधु संग तुम नहिं पहिचाना
।
अब तोर होय नर्क में बासा, निसिदिन बसेउ लबार के पासा
।
जात सबन कहं देखिया, कहहिं कबीर पुकार ।
चेतवा होय तो चेत ले, दिवस परतु है धार ।
रमैनी 45
हरणाकुस रावण गौ कंसा, कृष्ण गये सुर नर मुनि बंसा
।
ब्रह्मा राय ने मर्म न जाना, बड सब गये जे रहल सयाना ।
समुझि परी नहिं राम कहानी, निर्बक दूध की सर्वक पानी?
रहिगौ पंथ थकित भौ पवना, दसौ दिसा उजार भौ गवना?
मीन जाल भौ ई संसारा, लोह कि नाव पखाण को भारा?
खेवे सबै मर्म हम जाना, बूडै सबै कहैं उतराना?
मछरी मुख जस केचुआ, मुसवन मुंह गिरदान ।
सर्पन मुख गहेजुआ, जात सभन की जान ।
रमैनी 46
बिनसे नाग गरुड गलि जाई, बिनसै कपटी औ सत भाई ।
बिनसे पाप पुण्य जिन कीन्हा, बिनसे गुण निर्गुण जिन चीन्हा
।
बिनसै अग्नि पवन औ पानी, बिनसै सृष्टि कहां लौ गानी
।
बिष्णु लोक बिनसै छिन माहीं, हौं देखा परलय की छाहीं ।
मच्छ रूप माया भई, यमरा खेल अहेर ।
हरि हर ब्रह्म न ऊबरे, सुर नर मुनि केहि केर ।
रमैनी 47
जरासंध सिसुपाल संहारा, सहस्रार्जुन छल सो मारा ।
बड छल रावण सो गौ बीती, लंका रहि सोना कै भीती ।
दुर्योधन अभिमानहि गयऊ, पंडो केर मर्म नहिं पयऊ?
माया डिंभ गये सब राजा, उत्तम मध्यम बाजन बाजा ।
चक्रवर्ती सब धरणि समाना, एकौ जीव प्रतीत न आना?
कह लौं कहौं अचेतहि गयऊ, चेत अचेत झगर एक भयेऊ?
ई माया जग मोहनीं, मोहिस सब जग झारि ।
हरिश्चन्द्र सत कारने , घर घर गये बिकाय ।
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