शनिवार, अप्रैल 17, 2010

बूडै सबै कहैं उतराना


                             रमैनी 44

कबहुं न भयउ संग औ साथा, ऐसहि जन्म गंवायउ हाथा ।
बहुरि न पैहो ऐसो थाना, साधु संग तुम नहिं पहिचाना ।
अब तोर होय नर्क में बासा, निसिदिन बसेउ लबार के पासा ।

जात सबन कहं देखिया, कहहिं कबीर पुकार ।
चेतवा होय तो चेत ले, दिवस परतु है धार ।

                           रमैनी 45

हरणाकुस रावण गौ कंसा, कृष्ण गये सुर नर मुनि बंसा ।
ब्रह्मा राय ने मर्म न जाना, बड सब गये जे रहल सयाना ।
समुझि परी नहिं राम कहानी, निर्बक दूध की सर्वक पानी?
रहिगौ पंथ थकित भौ पवना, दसौ दिसा उजार भौ गवना?
मीन जाल भौ ई संसारा, लोह कि नाव पखाण को भारा?
खेवे सबै मर्म हम जाना, बूडै सबै कहैं उतराना?

मछरी मुख जस केचुआ, मुसवन मुंह गिरदान ।
सर्पन मुख गहेजुआ, जात सभन की जान ।

                             रमैनी 46

बिनसे नाग गरुड गलि जाई, बिनसै कपटी औ सत भाई ।
बिनसे पाप पुण्य जिन कीन्हा, बिनसे गुण निर्गुण जिन चीन्हा ।
बिनसै अग्नि पवन औ पानी, बिनसै सृष्टि कहां लौ गानी ।
बिष्णु लोक बिनसै छिन माहीं, हौं देखा परलय की छाहीं ।

मच्छ रूप माया भई, यमरा खेल अहेर ।
हरि हर ब्रह्म न ऊबरे, सुर नर मुनि केहि केर ।

                          रमैनी 47

जरासंध सिसुपाल संहारा, सहस्रार्जुन छल सो मारा ।
बड छल रावण सो गौ बीती, लंका रहि सोना कै भीती ।
दुर्योधन अभिमानहि गयऊ, पंडो केर मर्म नहिं पयऊ?
माया डिंभ गये सब राजा, उत्तम मध्यम बाजन बाजा ।
चक्रवर्ती सब धरणि समाना, एकौ जीव प्रतीत न आना?
कह लौं कहौं अचेतहि गयऊ, चेत अचेत झगर एक भयेऊ?

ई माया जग मोहनीं, मोहिस सब जग झारि ।
हरिश्चन्द्र सत कारने , घर घर गये बिकाय ।


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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।