
करम गति टारे नाहिं टरी ॥मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरी ।सीता हरन मरन दसरथ को, वन में बिपत परी ॥ कहं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहं वह मिरग चरी ।कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट जोन परि ॥ पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी ।कहत कबीर सुनो भई साधो होने होके रही ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें