शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

राम तेरी माया दुंद बजावै


शब्द 13
राम तेरी माया दुंद बजावै ।
गति मति समुझ परी नहिं, सुर नर मुनिहि नचावै ।
क्या सेमर तेरि साषा बढाये, फूल अनूपम बानी ।
केतिक चातृक लागि रहे हैं, देषत रुवा उडानी ।
काह षजूर बडाई तेरो, फल कोई न पावै ।
ग्रीसम ऋतु जब आनि तुलानी, छाया काम न आवै ।
अपना चतुर और को सिषवै, कनक कामिनी स्यानी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, राम चरन रितु मानी ।

शब्द 14
रामुरा संसै गांठि ना छूटै, ताते पकरि जम लूटै ।
होय कुलीन मिस्कीन कहावै, तूँ योगी सन्यासी ।
ग्यानी गुनी सूर कवि दाता, ये मति किनहु न नासी ।
स्मृति बेद पुरान पडै सब, अनुभव भाव न दरसै ।
लोह हिरन्य होय धौं कैसे, जो नहिं पारस परसै ।
जियत न तरेउ मुये का तरिहो, जियतहि नाहिं तरै ।
गही परतीत कीन्ह जिन्ह जासों, सोई तहां अमरै ।
जो कछु कियो ग्यान अग्यान, सोई समुझ सयाना ।
कहै कबीर तासो क्या कहिये, जो देषत दृष्टि भुलाना ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।