कबीर
साहब बोले - सत्यज्ञान बल से सदगुरू काल पर विजय प्राप्त
कर अपनी शरण में आये हुये हंसजीव को सत्यलोक ले जाते हैं । जहाँ पर हंसजीव मनुष्य
सत्यपुरुष के दर्शन पाता है, और अति आनन्द को प्राप्त करता
है । फ़िर वह वहाँ से लौटकर कभी भी इस कष्टदायक दुखदायी संसार में वापस नहीं आता, यानी उसका मोक्ष हो जाता है ।
धर्मदास, मेरे वचन उपदेश को भली प्रकार से ग्रहण करो । जिज्ञासु इंसान को सत्यलोक
जाने के लिये सत्य के मार्ग पर ही चलना चाहिये । जैसे शूरवीर योद्धा एक बार युद्ध
के मैदान में घुसकर पीछे मुढ़कर नहीं देखता । बल्कि निर्भय होकर आगे बढ़ जाता है ।
ठीक
वैसे ही कल्याण की इच्छा रखने वाले जिज्ञासु साधक को भी सत्य की राह पर चलने के
बाद पीछे नहीं हटना चाहिये । अपने पति के साथ सती होने वाली नारी, और युद्ध भूमि में सिर कटाने वाले वीर के महान आदर्श को देख समझ कर जिस प्रकार मनुष्य दया, संतोष, धैर्य,
क्षमा, वैराग, विवेक आदि
सदगुणों को ग्रहण कर अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं ।
उसी
अनुसार दृढ़ संकल्प के साथ सत्य सन्त-मत स्वीकार करके जीवन की राह में आगे बढ़ना
चाहिये । जीवित रहते हुये भी मृतक-भाव अर्थात मान, अपमान,
हानि, लाभ, मोह, माया से रहित होकर सत्यगुरू के बताये सत्यज्ञान से इस घोर काल कष्ट पीङा
का निवारण करना चाहिये ।
धर्मदास, लाखों करोङों में कोई एक बिरला मनुष्य ही ऐसा होता है । जो सती, शूरवीर और सन्त के बताये हुये उदाहरण के अनुसार आचरण करता है, और तब उसे परमात्मा के दर्शन साक्षात्कार प्राप्त होता है ।
धर्मदास
बोले - साहिब, मुझे मृतक भाव
क्या होता है? इसे पूर्ण रूप से स्पष्ट बताने की कृपा करें ।
कबीर
बोले - धर्मदास, जीवित रहते
हुये, जीवन में मृतक दशा की कहानी बहुत ही कठिन है, इस सदगुरू के सत्यज्ञान से कोई बिरला ही जान सकता है । सदगुरू के उपदेश
से ही यह जाना जाता है ।
धर्मदास
यह कठिन कहानी, गुरूमत ते कोई बिरले जानी ।
जीवन
में मृतक भाव को प्राप्त हुआ सच्चा मनुष्य अपने परमलक्ष्य मोक्ष को ही खोजता है । वह
सदगुरू के शब्द विचार को अच्छी तरह से प्राप्त करके उनके द्वारा बताये गये सत्यमार्ग
का अनुसरण करता है ।
उदाहरणस्वरूप
जैसे भ्रंगी (पंख वाला चींटा, जो दीवाल,
खिङकी आदि पर मिट्टी का घर बनाता है) किसी
मामूली से कीट के पास जाकर उसे अपना तेज शब्द घूँ घूँ घूँ सुनाता है । तब वह कीट
उसके गुरू ज्ञान-रूपी शब्द उपदेश को ग्रहण करता है ।
गुंजार
करता हुआ भ्रंगी अपने ही तेज शब्द स्वर की गुंजार सुना सुनाकर कीट को प्रथ्वी पर
डाल देता है, और जो कीट उस भ्रंगी शब्द को धारण करे ।
तब भ्रंगी
उसे अपने घर ले जाता है, तथा गुंजार गुंजार कर उसे अपना ‘स्वाति शब्द’
सुनाकर उसके शरीर को अपने समान बना लेता है । भ्रंगी के महान शब्द-रूपी स्वर
गुंजार को यदि कीट अच्छी तरह से स्वीकार कर ले तो वह मामूली कीट से भ्रंगी के समान
शक्तिशाली हो जाता है । फ़िर दोनों में कोई अंतर नहीं रहता समान हो जाता है ।
असंख्य
झींगुर कीटों में से कोई-कोई बिरला कीट ही उपयुक्त और अनुकूल सुख प्रदान कराने
वाला होता है । जो भ्रंगी के ‘प्रथम शब्द’ गुंजार को
ह्रदय से स्वीकारता है ।
अन्यथा
कोई दूसरे, और तीसरे शब्द को ही शब्द स्वर मान कर स्वीकार
कर लेता है ।
तन-मन
से रहित भ्रंगी के उस महान शब्द रूपी गुंजार को स्वीकार करने में ही झींगुर कीट
अपना भला मानते हैं ।
भ्रंगी
के शब्द स्वर गुंजार को जो कीट स्वीकार नहीं करता तो फ़िर वह कीटयोनि के आश्रय में
ही पङा रहता है, यानी वह मामूली कीट से शक्तिशाली भ्रंगी नहीं
बन सकता । धर्मदास, यह मामूली कीट का भ्रंगी में बदलने का
अदभुत रहस्य है जो कि महान शिक्षा प्रदान करने वाला है ।
इसी
प्रकार जङ बुद्धि शिष्य जो सदगुरू के उपदेश को ह्रदय से स्वीकार करके ग्रहण करता
है । उससे वह विषय-विकारों से मुक्त होकर अज्ञानरूपी बंधनों से मुक्त होकर
कल्याणदायी मोक्ष को प्राप्त होता है ।
धर्मदास, भ्रंगी भाव का महत्व और श्रेष्ठता को जानो । भ्रंगी की तरह यदि कोई
मनुष्य निश्चय पूर्ण बुद्धि से गुरू के उपदेश को स्वीकार करे तो गुरू उसे अपने
समान ही बना लेते हैं । जिसके ह्रदय में गुरू के अलावा दूसरा कोई भाव नहीं होता, और वह सदगुरू को समर्पित होता है, वह मोक्ष को
प्राप्त होता है । इस तरह वह नीचयोनि में बसने वाले कौवे से बदलकर उत्तम योनि को
प्राप्त हो हंस कहलाता है ।
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