रविवार, मार्च 28, 2010

तब बचिहौ जब रामहि जानी


                              रमैनी 21

बहुत दुख दुख ही की खानी, तब बचिहौ जब रामहि जानी ।
रामहि जानि युक्ति से चलही, युक्तिहि ते फंदा नहिं परहीं?
जुक्तिहि जुक्ति चला संसारा, निश्चय कहा न मानु हमारा ।
कनक कामिनी घोर पटोरा, संपति बहुत रहहि दिन थोरा ।
थोरी संपति गौ बौराई, धर्मराय की खबरि न पाई ।
देषि त्रास मुख गौ कुम्हिलाई, अमृत धोखै गौ विष खाई ।

मैं सिरजौं मैं मारता, मैं जारौं मैं खाउँ ।
जल और थल में मैं रमा, मोर निरंजन नांउ ।

                              रमैनी 22

अलख निरंजन लखै न कोई, जेहि बंधे बंधा सब लोई?
जेहि झूठे सब बांधु अयाना, झूठी बात सांच कै जाना?
धंधा बंधा कीन्ह व्यौहारा, करम विवर्जित बसै नियारा ।
षट आश्रम षट दरसन कीन्हा, षट रस वस्तु खोट सब चीन्हा ।
चार वृक्ष छब साख बखानी, विद्या अगनित गनै न जानी ।
औरौ आगम करै बिचारा, ते नहिं सूझे वार न पारा ।
जप तीरथ ब्रत कीजे पूजा, दान पुन्य कीजे बहु दूजा ।

मन्दिर तो है नेह का, मति कोइ पैठै धाय ।
जो कोइ पैठे धाय के, बिन सिर सेंती जाय ।

                            रमैनी 23

अल्प दुख सुख आदिउ अन्ता, मन भुलान मैगर मैं मन्ता ।
सुख बिसराय मुक्ति कहँ पावै, परिहरि साँच झूठ निज धावै?
अनल ज्योति डाहे एक संगा, नैन नेह जस जरै पतंगा?
करहु विचार जो सब दुख जाई, परिहरि झूठा केरि सगाई ।
लालच लागी जन्म सिराई, जरा मरन नियरायल आई ।

भर्म का बाँधा ई जगत, येहि बिधि आवे जाय ।
मानुष जीवन पाय के, नर काहे जहँडाय ।


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।