रमैनी 21
बहुत दुख दुख ही की खानी, तब बचिहौ जब रामहि जानी ।
रामहि जानि युक्ति से चलही, युक्तिहि ते फंदा नहिं परहीं?
जुक्तिहि जुक्ति चला संसारा, निश्चय कहा न मानु हमारा
।
कनक कामिनी घोर पटोरा, संपति बहुत रहहि दिन थोरा
।
थोरी संपति गौ बौराई, धर्मराय की खबरि न पाई ।
देषि त्रास मुख गौ कुम्हिलाई, अमृत धोखै गौ विष खाई ।
मैं सिरजौं मैं मारता, मैं जारौं मैं खाउँ ।
जल और थल में मैं रमा, मोर निरंजन नांउ ।
रमैनी 22
अलख निरंजन लखै न कोई, जेहि बंधे बंधा सब लोई?
जेहि झूठे सब बांधु अयाना, झूठी बात सांच कै जाना?
धंधा बंधा कीन्ह व्यौहारा, करम विवर्जित बसै नियारा
।
षट आश्रम षट दरसन कीन्हा, षट रस वस्तु खोट सब चीन्हा
।
चार वृक्ष छब साख बखानी, विद्या अगनित गनै न जानी
।
औरौ आगम करै बिचारा, ते नहिं सूझे वार न पारा
।
जप तीरथ ब्रत कीजे पूजा, दान पुन्य कीजे बहु दूजा
।
मन्दिर तो है नेह का, मति कोइ पैठै धाय ।
जो कोइ पैठे धाय के, बिन सिर सेंती जाय ।
रमैनी 23
अल्प दुख सुख आदिउ अन्ता, मन भुलान मैगर मैं मन्ता
।
सुख बिसराय मुक्ति कहँ पावै, परिहरि साँच झूठ निज धावै?
अनल ज्योति डाहे एक संगा, नैन नेह जस जरै पतंगा?
करहु विचार जो सब दुख जाई, परिहरि झूठा केरि सगाई ।
लालच लागी जन्म सिराई, जरा मरन नियरायल आई ।
भर्म का बाँधा ई जगत, येहि बिधि आवे जाय ।
मानुष जीवन पाय के, नर काहे जहँडाय ।
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