रविवार, मार्च 28, 2010

लाभ ते हानि होय रे भाई


                           रमैनी 13

नहीं प्रतीत जो यह संसारा, द्रव्य के चोट कठिन कै मारा ।
सो तो सेखै जाइ लुकाई, काहु के प्रतीति न आई ।
चलै लोग सब मूल गंवाई, जम की बाढि काटि नहिं जाई ।
आजु काज पर काल अकाजा, चले लादि दिग अंतर राजा ।
सहज विचारत मूल गंवाई, लाभ ते हानि होय रे भाई?
ओछी मती चन्द्र गो अथई, त्रिकुटी संगम स्वामी बसई ।
तबही विष्णु कहा समुझाई, मैथुन अस्ट तुम जीतहु जाई?
तब सनकादिक तत्व विचारा, ज्यों धन पावहि रंक अपारा ।
भो मर्याद बहुत सुख लागा, एहि लेखे सब संसय भागा ।
देखत उत्पति लागु न बारा, एक मरै एक करै बिचारा ।
मुए गए की काहु न कही, झूठी आस लागि जग रही?

जरत जरत तें बाचहू, काहे न करहु गोहार ।
विष विषया कै खायहु, रात दिवस मिल झार ।

                            रमैनी 14

बड सो पापी आहि गुमानी, पाखंड रूप छलेउ नर जानी ।
बावन रूप छलेउ बलि राजा, ब्राह्मन कीन्ह कौन को काजा ।
ब्राह्मन ही सब कीन्हा चोरी, ब्राह्मन ही की लागल खोरी ।
ब्राह्मन कीन्हों वेद पुराना, कैसेहु के मोहि मानुष जाना ।
एक से ब्रह्मै पंथ चलाया, एक से हंस गोपालहि गाया ।
एक से शम्भू पथ चलाया, एक से भूत प्रेत मन लाया ।
एक से पूजा जैन बिचारा, एक से निहुरि निमाज गुजारा ।
कोई काम का हटा न माना, झूठा खसम कबीर न जाना?
तन मन भजि रहु मोरे भक्ता, सत्य कबीर सत्य है वक्ता ।
आपहु देव आपु ही पाती, आपुहि कुल आपुहि है जाती?
सर्व भूत संसार निवासी, आपुहि खसम आपु सुखरासी ।
कहते मोहि भए युग चारी, काके आगे कहौं पुकारी?

साँचहि कोई न मानई, झूठहि के संग जाए ।
झूठहि झूठा मिलि रहा, अहमक खेहा खाए ।

                             रमैनी 15

उनही बदरिया परि गै साँझा, अगुवा भूला बन खंड माँझा ।
पिया अंते धन अंते रहई, चौपरि कामरि माथे गहई ।

फुलवा भार न लै सकै, कहै सखिन सो रोए ।
ज्यों ज्यों भीजै कामरी, त्यों त्यों भारी होए ।

                        रमैनी 16

चलत चलत अति चरण पिराना, हारि परै तहँ अति खिसियाना?
गण गंधर्व मुनि अंत न पाया, हरि अलोप जग धंधे लाया ।
गहनी बंधन बाँध न सूझा, थाकि परे तहाँ कछू न बूझा ।
भूलि परे जिए अधिक डेराई, रजनी अंध कूप हो आई ।
माया मोह वहां भरपूरी, दादुर दामिन पवनहि पूरी ।
बरसै तपै अखंडित धारा, रैन भयावनि कछु न अधारा ।

सभै लोग जहँडाइया, अंधा सबै भुलान ।
कहा कोइ नहिं मानहीं, एकै माहिं समान ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।