शनिवार, मार्च 27, 2010

दूजा केहि विधि उपजा


      शब्द

प्रथमै समरथ आपु रह, दूजा रहा न कोय ।
दूजा केहि विधि उपजा, पूछत हौं गुरु सोय ।1।
तब सतगुरु मुख बोलिया, सुकिरित सुनो सुजान ।
आदि अन्त की पारचै, तोसो कहौं बखान ।2।
प्रथम सुरति समरथ कियो, घट में सहज उचार ।
ताते जामन दीनियां, सात करी विस्तार ।3।
दूजे घट इच्छा भई, चित मनसा को कीन्ह ।
सात रूप निरमाईया, अविगत काहु ना चीन्ह ।4।
तब समरथ के श्रवण ते, मूल सुरति भयो सार ।
शब्द कला ताते भई, पाँच ब्रह्म अनुसार ।5।
पाँचों पाँच खण्ड धरि, एक एकमा कीन्ह ।
दुइ इच्छा तहाँ गुप्त हैं, सो सुकिरित चित चीन्ह ।6।
योगमया एकु कारनो, ऊधो अक्षर कीन्ह ।
था अविगत समरथ करी, ताहि गुप्त करि दीन्ह ।7।
स्वासा सोहं ऊपजै, कीन्ह अमी बंधान ।
आठ अंस निरमाईया, चीन्हौ सन्त सुजान ।8।
तेज अंड आचिन्त का, दीन्हों सकल पसार ।
अंउ सिखा पर बैठि के, अधर दीप निरधार ।9।
ते अचिन्त के प्रेम ते, उपजे अक्षर सार ।
चारि अंस निरमाइया, चारि बेद विस्तार ।10।
तब अक्षर का दीनियां, नींद मोह अलसान ।
वे समरथ अविगत करी, मर्म कोइ नहि जान ।11।
जब अक्षर के नींद गै, दबी सुरति निरबान ।
स्याम बरन यक अंड है, सो जल में उतरान ।12।
अक्षर घट में ऊपजै, व्याकुल संसय सूल ।
किन अंडा निरमाइया, कहा अंड का मूल ।13।
तेही अंड के मुक्ख पर, लगी शब्द की छाप ।
अक्षर दृष्टि से फ़ूटिया, दस द्वारे कढ़ि बाप ।14।
तेहिते ज्योति निरंजनौ, प्रगटे रूप निधान ।
काल अपरबल बीरमा, तीन लोक परधान ।15।
ताते तीनों देव भै, ब्रह्मा बिस्नु महेस ।
चारि खानि तिन सिरजिया, माया के उपदेस ।16।
चारि बेद खट सास्त्रऊ, औ दस अष्ट पुरान ।
आशा है जग बांधियां, तीनों लोक भुलान ।17।
लख चौरासी धारमा, तहाँ जीव दिये वास ।
चौदह यम रखबारिया, चारि बेद विस्वास ।18।
आप आप सुख सब रमै, एक अंड के मांहि ।
उत्पत्ति परलय दुख सुख, फ़िर आवहि फ़िर जाहिं ।19।
तेहि पाछे हम आईया, सत्त शब्द के हेत ।
आदि अन्त की उत्पती, तो तुमसो कहि देत ।20।
सात सुरत सब मूल है, परलय इनही माहिं ।
इनहीं मासे उपजै, इनही माहिं समाहिं ।21।
सोई ख्याल समरत्थ उर, रहे सो अछ पछताइ ।
सोइ संधि लै आईया, सोवत जगहि जगाय ।22।
सात सुरति के बाहरे, सोरह संखि के पार ।
तहँ समरथ का बैठका, हंसन करे अधार ।23।
घर घर हम सबसों कही, सब्द न सुनै हमार ।
ते भवसागर डूबहीं, लख चौरासी धार ।24।
मंगल उतपति आदि का, सुनियो सन्त सुजान ।
कह कबीर गुरु जागरत, समरथ का फ़रमान ।25।


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।