रविवार, मार्च 28, 2010

एकै पंडित सबै पढाये


                               रमैनी 17

जस जिव आपु मिलै अस कोई, बहुत धर्म सुख हृदया होई ।
जासों बात राम की कही, प्रीति ना काहू सों निर्वही ।
एकै भाव सकल जग देखी, बाहर परे सो होय बिबेकी ।
विषय मोह के फंद छोडाई, जहाँ जाय तहँ काटु कसाई ।
अहै कसाई छूरी हाथा, कैसेहु आवै काटौ माथा?
मानुस बडे बडे हो आए, एकै पंडित सबै पढाये ।
पढना पढौ धरौ जनि गोई, नहिं तो निश्चय जाहु बिगोई ।

सुमिरन करहु राम के, छाडहु दुख की आस ।
तर ऊपर धर चापि हैं, जस कोल्हु कोट पचास ।

                        रमैनी 18

अदभुद पंथ बरनि नहिं जाई, भूले राम भूलि दुनियाई ।
जो चेतहु तो चेत रे भाई, नहि तो जीवहि जम ले जाई?
सब्द न मान कथै बिग्याना, ताते यम दीन्हो है थाना?
संसय सावज बसै सरीरा, तिन्ह खायो अनबेधा हीरा ।

संसय सावज सरीर में, संगहि खेलै जुआरि ।
ऐसा घायल बापुरा, जीवन मारै झारि ।

                               रमैनी 19

अनहद अनुभव को करि आसा, देखहु यह विपरीत तमासा?
इहै तमासा देखहु भाई, जहवाँ सून्य तहाँ चलि जाई?
सून्यहि बासा सून्यहि गयऊ, हाथा छोडि बे हाथा भयऊ ।
संसय सावज सब संसारा, काल अहेरी साँझ सकारा?

सुमिरन करहु राम का, काल गहे है केस ।
ना जाने कब मारि है, क्या घर क्या परदेस ।

                                रमैनी 20

अब कहु राम नाम अविनासी, हरि छोडि जियरा कतहुँ न जासी ।
जहाँ जाहु तहँ होहु पतंगा, अब जनि जरहु समुझि विष संगा ।
राम नाम लौ लायसु लीन्हा, भृंगी कीट समुझि मन दीना ।
भौ अस गरुवा दुष की भारी, करु जिव जतन सु देखु विचारी ।
मन के बात है लहरि विकारा, तब नहिं सूझै वार न पारा ।

इच्छा के भवसागरे, वोहित राम अधार ।
कहि कबीर हरि सरण गहु, गौबछ खुर बिस्तार ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।