रमैनी 6
बरनहु कौन रूप औ रेखा, दूसर कौन आहि जो देखा?
ओ ओंकार आदि नहिं वेदा, ताकर कौन कहहु कुल भेदा ।
नहिं तारागन नहिं रवि चंदा, नहिं कुछ होत पिता के बिंदा
।
नहिं जल नहिं थल नहिं थिर पवना, को धरे नाम हुकुम को बरना
।
नहिं कछु होत दिवस अरु राती । ताकर कहहुँ
कवन कुल जाती ।
सून्य सहज मन सुमिरते, प्रगट भई एक जोति ।
ताहि पुरुष की मैं बलिहारी, निरालंब जो होत?
रमैनी 7
जहिया होत पवन नहिं पानी, तहिया सृष्टि कौन उतपानी
।
तहिया होत कली नहिं फूला, तहिया होत गर्भ नहिं मूला
।
तहिया होत न विद्या वेदा, तहिया होत सब्द नहिं खेदा
।
तहिया होत पिंड नहिं बासू, ना धर धरनि न गगन अकासू ।
तहिया होति न गुरू न चेला, गम्य अगम्य न पंथ दुहेला?
अविगति की गति क्या कहौं, जाके गाँव न ठाँव ।
गुन विहीना पेखना, क्या कहि लीजै नाँव ।
रमैनी 8
तत्वमसी इनके उपदेसा, ई उपनिषद कहैं संदेसा?
ये निश्चय इनको बङ भारी, वाही को बरने अधिकारी ।
परम तत्व का निज परवाना, सनकादिक नारद सुख माना ।
याग्यवलक औ जनक सँबादा, दत्तात्रेय वहै रस स्वादा
।
वहै वसिष्ठ राम मिल गाई, वहै कृष्न ऊधव समुझाई ।
वही बात जे जनक दृढाई, देह धरे विदेह कहाई?
कुल मर्यादा खोय के, जियत मुआ नहिं होय ।
देखत जो नहिं देखिया, अदृष्ट कहावे सोय?
रमैनी 9
बाँधे अस्ठ कस्ट नौ सूता, जम बांधे अंजनी के पूता ।
जम के बांधने बांधी जनी, बांधे सृष्टि कहां लौ गनी
।
बाँधे देव तैंतीस करोरी, सुमिरत बंद लोह गै तोरी ।
राजा सुमिरै तुरिया चढी, पंथी सुमिरै मान लै बढी ।
अर्थ विहीना सुमिरै नारी, परजा सुमिरै पुहुमी झारी?
बंदि मनावे सो फल पावे, बंदि दिया सो देव ।
कहे कबीर सो ऊबरे, जो निसि दिन नामहिं लेव ।
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