कबीर
सूता क्या करै, सूते होय अकाज।
ब्रह्मा
को आसन डिग्यो, सुनी काल की गाज॥
कबीर
सूता क्या करै, ऊठि न रोवो दूख।
जाका
वासा गोर में, सो क्यों सोये सूख॥
कबीर
सूता क्या करै, जागन की कर चौंप।
ये दम
हीरा लाल है, गिन गिन गुरू को सौंप॥
कबीर
सूता क्या करै, काहे न देखै जागि।
जाके
संग ते बीछुरा, ताहि के संग लागि॥
अपने
पहरै जागिये, ना परि रहिये सोय।
ना
जानौ छिन एक में, किसका पहरा होय॥
नींद
निसानी मीच की, उठु कबीरा जाग।
और
रसायन छांङि के, नाम रसायन लाग॥
सोया
सो निस्फ़ल गया, जागा सो फ़ल लेहि।
साहिब
हक्क न राखसी, जब मांगे तब देहि॥
केसव
कहि कहि कूकिये, ना सोइये असरार।
रात
दिवस के कूकते, कबहुँक लगै पुकार॥
कबीर
क्षुधा है कूकरी, करत भजन में भंग।
याकूं
टुकङा डारि के, सुमिरन करूं सुरंग॥
गिरही
का टुकङा बुरा, दो दो आंगुल दांत।
भजन
करैं तो ऊबरे, नातर काढ़ै आंत॥
बाहिर
क्या दिखलाइये, अन्तर जपिये नाम।
कहा
महोला खलक सों, पर्यो धनी सो काम॥
गोविंद
के गुन गावता, कबहु न कीजै लाज।
यह
पद्धति आगे मुकति, एक पंथ दो काज॥
गुन
गाये गुन ना कटै, रटै न नाम वियोग।
अहिनिस
गुरू ध्यायो नहीं, पावै दुरलभ जोग॥
सतगुरू
का उपदेस, सतनाम निज सार है।
यह निज
मुक्ति संदेस, सुनो संत सत भाव से॥
क्यौं
छूटै जम जाल, बहु बंधन जिव बांधिया।
काटै
दीनदयाल, करम फ़ंद इक नाम से॥
काटहु
जम के फ़ंद, जेहि फ़ंदे जग फ़ंदिया।
कटै तो
होय निसंक, नाम खङग सदगुरू दिया॥
तजै
काग को देह, हंस दसा की सुरति पर।
मुक्ति
संदेसा येह, सत्तनाम परमान अस॥
सुमिरन
मारग सहज का, सदगुरू दिया बताय।
सांस
सांस सुमिरन करूं, इक दिन मिलसी आय॥
सुमिरन
से सुख होत है, सुमिरन से दुख जाय।
कहैं
कबीर सुमिरन किये, साईं मांहि समाय॥
सुमिरन
की सुधि यौं करो, जैसे कामी काम।
कहैं
कबीर पुकारि के, तब प्रगटै निज नाम॥
सुमिरन
की सुधि यौं करो, ज्यौं गागर पनिहार।
हालै
डोलै सुरति में, कहैं कबीर विचार॥
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