बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

सुमिरन को अंग 3

सुमिरन को अंग

जैसे फ़निपति मंत्र सुनि, राखै फ़नहि सिकोर।
तैसे वीरा नाम ते, काल रहै मुख मोर॥

सबको नाम सुनावहु, जो आयेगो पास।
सब्द हमारो सत्त है, दृढ़ राखो विस्वास॥

होय विवेकी सब्द का, जाय मिले परिवार।
नाम गहै सो पहुँचई, मानो कहा हमार॥

सुरति समावे नाम में, जग से रहे उदास।
कहै कबीर गुरू चरन में, दृढ़ राखो विस्वास॥

अस औसर नहि पाइहौ, धरो नाम कङिहार।
भौसागर तरि जाव जब, पलक न लागे वार॥

आसा तो इक नाम की, दूजी आस निवार।
दूजी आसा मारसी, ज्यौं चौपर की सार॥

कोटि करम कटि पलक में, रंचक आवै नाम।
जुग अनेक जो पुन्य करु, नही नाम बिनु ठाम॥

सपने में बरराई के, धोखे निकरै नाम।
वाके पग की पानही, मेरे तन को चाम॥

जाकी गांठी नाम है, ताके है सब सिद्धि।
कर जोरै ठाढ़ी सबै, अष्ट सिद्धि नव निद्धि॥

हयवर गयवर सघन घन, छत्र धुजा फ़हराय।
ता सुख ते भिक्षुक भला, नाम भजत दिन जाय॥

पारस रूपी नाम है, लोहा रूपी जीव।
जब सो पारस भेंटिहै, तब जिव होसी सीव॥

पारस रूपी नाम है, लोह रूप संसार।
पारस पाया पुरुष का, परखि परखि टकसार॥

सुख के माथे सिल परै, नाम ह्रदे से जाय।
बलिहारी वा दुख की, पल पल नाम रटाय॥

लेने को सतनाम है, देने को अंनदान।
तरने को आधीनता, बूङन को अभिमान॥

लूटि सकै तो लूटि ले, रामनाम की लूट।
नाम जु निरगुन को गहौ, नातर जैहो खूट॥

कहैं कबीर तूं लूटि ले, रामनाम भंडार।
काल कंठ को जब गहे, रोकै दसहूं द्वार॥

कबीर निर्भय नाम जपु, जब लग दीवे बाति।
तेल घटे बाती बुझै, सोवोगे दिन राति॥

कबीर सूता क्या करै, जागी जपो मुरार।
एक दिना है सोवना, लंबे पांव पसार॥

कबीर सूता क्या करै, उठिन भजो भगवान।
जम घर जब ले जायेंगे, पङा रहेगा म्यान॥

कबीर सूता क्या करै, गुन सतगुरू का गाय।
तेरे सिर पर जम खङा, खरच कदे का खाय॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।