शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

सुमिरन को अंग 8


कबीर मन निश्चल करो, सत्तनाम गुन गाय।
निश्चल बिना न पाईये, कोटिक करो उपाय॥

निसदिन एकै पलक ही, जो कहु नाम कबीर।
ताके जनमो जनम के, जैहै पाप शरीर॥

सुरति फ़ंसी संसार में, ताते परिगो दूर।
सुरति बांधि अस्थिर करो, आठों पहर हजूर॥

नाम साँच गुरू साँच है, आप साँच जब होय।
तीन साँच जब परगटे, विष का अमृत होय॥

मनुवा तो गाफ़िल भया, सुमिरन लागै नांहि।
घनी सहेगा सासना, जम के दरगह मांहि॥

हाथों में माला फ़िरे, हिरदा डामाडूल।
पग तो पाला में पङा, भागन लागे सूल॥

वाद विवादा मत करो, करु नित एक विचार।
नाम सुमिर चित्त लाय के, सब करनी में सार॥

वाद करै सो जानिये, निगुरे का वह काम।
सन्तों को फ़ुरसत नहीं, सुमिरन करते नाम॥

भक्ति भजन हरि नाम है, दूजा दुःख अपार।
मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरन सार॥

जागन में सोवन करै, सोवन में लव लाय।
सुरति डोर लागी रहे, तार तूटि नहि जाय॥

जोइ गहै निज नाम को, सोई हंस हमार।
कहै कबीर धर्मदास सों, उतरे भवजल पार॥

कबीर सुमिरन अंग को, पाठ करे मन लाय।
विद्याहिन विद्या लहै, कहै कबीर समुझाय॥

जो कोय सुमिरन अंग को, पाठ करे मन लाय।
भक्ति ज्ञान मन ऊपजै, कहै कबीर समुझाय॥

जो कोय सुमिरन अंग को, निसि बासर करै पाठ।
कहै कबीर सो संतजन, संधै औघट घाट॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।