शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

सुमिरन को अंग 6


कबीर राम रिझाय ले, जिभ्या के रस स्वाद।
और स्वाद रस त्याग दे, राम नाम के स्वाद॥

कबीर मुख से राम कहु, मनहि राम को ध्यान।
रामक सुमिरन ध्यान नित, यही भक्ति यहि ज्ञान॥

राम नाम गुन गावते, तोहि न आवै लाज।
जो कोइ लाजै राम से, ताका तन बेकाज॥

जीना थोङा ही भला, हरि का सुमिरन होय।
लाख बरस का जीवना, लेखै धरै न कोय॥

निज सुख आतमराम है, दूजा दुख अपार।
मनसा वाचा करमना, कबीर सुमिरन सार॥

जो बोलो तो राम कहु, अन्त कहूँ मति जाय।
कहै कबीर निसदिन कहै, सुमिरन सुरति लगाय॥

नर नारी सब नरक है, जब लगि देह सकाम।
कहै कबीर सो पीव को, जो सुमिरै निहकाम॥

दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, दुख काहे को होय॥

सुख में सुमिरन ना किया, दुख में कीया याद।
कहै कबीर ता दास की, कौन सुनै फ़रियाद॥

साई सुमिर मति ढील कर, जो सुमिर ते लाह।
इहाँ खलक खिदमत करै, उहाँ अमरपुर जाह॥

सांई यौं मति जानियो, प्रीति घटे मम चीत।
मरूं तो सुमीरत मरूं, जीयत सुमिरूं नीत॥

साईं को सुमिरन करै, ताको बंदे देव।
पहली आप उगावही, पाछे लारै सेव॥

चिंता तो सतनाम की, और न चितवै दास।
जो कछु चितवै नाम बिनु, सोई काल की फ़ांस॥

पांच संगि पिव पिव करै, छठा जो सुमिरै मन।
आई सुरति कबीर की, पाया राम रतन॥

मन जो सुमिरै राम को, राम बसै घट आहि।
अब मन रामहि ह्वै रहा, सीस नवाऊं काहि॥

तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँय।
बारी तेरे नाम पर, जित देखूँ तित तूँय॥

तू तू करता तू भया, तुझमें रहा समाय।
तुझ मांही मन मिलि रहा, अब कहुँ अन्त न जाय॥

रग रग बोलां रामजी, रोम रोम रंकार।
सहजे ही धुन होत है, सोई सुमिरन सार॥

सहजे ही धुन होत है, पल पल घटही मांहि।
सुरति सब्द मेला भया, मुख की हाजत नांहि॥

अजपा सुमिरन घट विषे, दीन्हा सिरजन हार।
ताही सों मन लगि रहा, कहैं कबीर विचार॥

सांस सांस पर नाम ले, वृथा सांस मति खोय।
ना जानै इस सांस को, आवन होय न होय॥

सांस सुफ़ल सो जानिये, जो सुमिरन में जाय।
और सांस यौं ही गये, करि करि बहुत उपाय॥

कहा भरोसा देह का, बिनसि जाय छिन मांहि।
सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नांहि॥

जाकी पूंजी सांस है, छिन आवै छिन जाय।
ताको ऐसा चाहिये, रहे नाम लौ लाय॥

कहता हूं कहि जात हूँ, कहूँ बजाये ढोल।
स्वासा खाली जात है, तीन लोक का मोल॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।