॥अष्टपदी रमैणी॥
केऊ केऊ तीरथ ब्रत लपटाना, केऊ केऊ केवल राम निज
जाना ?
अजरा अमर एक अस्थाना, ताका मरम काहू बिरलै
जाना ?
अबरन जोति सकल उजियारा, द्रिष्टि समान दास
निस्तारा ।
जो नहीं उपज्या धरनि सरीरा, ताकै पथि न सींच्या नीरा
।
जा नहीं लागे सूरजि के बाना, सो मोहि आनि देहु को
दाना ।
जब नहीं होते पवन नहीं पानी, तब नहीं होती सिष्टि
उपांनी ।
जब नहीं होते प्यंड न बासा, तब नहीं होते धरनी अकासा
।
जब नहीं होते गरभ न मूला, तब नहीं होते कली न फूला
।
जब नहीं सबद नहीं न स्वाद, तब नहीं होते विद्या न
वाद ।
जब नहीं होते गुरु न चेला, तब गम अगमै पंथ अकेला ।
अवगति की गति क्या कहूँ, जिस कर गांव न नांव ।
गुन बिहून का पेखिये, का कर धरिये नांव ।
आदम आदि सुधि नहीं पाई, मांमा हउवा कहाँ थै आई ।
जब नहीं होते राम खुदाई, साखा मूल आदि नहीं भाई ।
जब नहीं होते तुरक न हिंदू, मां का उदर पिता का
ब्यंदू ?
जब नहीं होते गाइ कसाई, तब बिसमला किनि फुरमाई ।
भूलै फिरै दीन ह्नै धांवै, ता साहिब का पंथ न पावै?
संजोगै करि गुण धर्या, बिजोगै गुण जाइ ?
जिभ्या स्वारथि आपणै, कीजै बहुत उपाइ ।
जिनि कलमां कलि मांहि पठावा, कुदरत खोजि तिनहं नहीं
पावा ।
कर्म करीम भये कर्तूता, वेद कुरान भये दोऊ रीता
।
कृतम सो जु गरभ अवतरिया, कृतम सो जु नाव जस धरिया
।
कृतम सुनित्य और जनेऊ, हिंदू तुरक न जानै भेऊ ।
मन मुसले की जुगति न जानै, मति भूलै द्वै दीन बखानै
।
पाणी पवन संयोग करि, कीया है उतपाति ।
सुंनि में सबद समाइगा, तब कासनि कहिये जाति ।
तुरकी धरम बहुत हम खोजा, बहु बाजगर करै ए बोंधा ।
गाफिल गरब करै अधिकाई, स्वारथ अरथि बधै ए गाई ।
जाकौ दूध धाई करि पीजै, ता माता को बध क्यूं
कीजै ।
लुहरै थकै दुहि पीया खीरो, ताका अहमक भकै सरीरो?
बेअकली अकलि न जानहीं, भूले फिरै ए लोइ ।
दिल दरिया दीदार बिन, भिस्त कहाँ थै होइ ।
पंडित भूले पढ़ि गुन्य वेदा, आप न पावै नाना भेदा ।
संध्या तरपन अरु षट करमा, लागि रहे इनकै आशर मां ।
गायत्री जुग चारि पढ़ाई, पूछौ जाइ कुमति किनि पाई
।
सब में राम रहै ल्यौ सींचा, इन थैं और कहौ को नीचा ।
अति गुन गरब करै अधिकाई, अधिकै गरबि न होइ भलाई ।
जाकौ ठाकुर गरब प्रहारी, सो क्यूँ सकई गरब संहारी
।
कुल अभिमान बिचार तजि, खोजौ पद निरबान ।
अंकुर बीज नसाइगा, तब मिलै बिदेही थान ।
खत्री करै खत्रिया धरमो, तिनकूं होय सवाया करमो ।
जीवहि मारि जीव प्रतिपारैं, देखत जनम आपनौ हारै ।
पंच सुभाव जु मेटै काया, सब तजि करम भजैं राम
राया ।
खत्री सों जु कुटुंब सूं सूझै, पंचू मेटि एक कूं बूझै ।
जो आवध गुर ग्यान लखावा, गहि कर बल धूप धरि धावा
।
हेला करै निसानै घाऊ, जूझ परै तहां मनमथ राऊ ।
मनमथ मरे न जीवई, जीवण मरण न होइ ।
सुनि सनेही राम बिन, गये अपनपौ खोइ ।
अरु भूले षट दरसन भाई, पाखंड भेष रहे लपटाई ।
जैन बोध अरु साकत सैंना, चारवाक चतुरंग बिहूना ।
जैन जीव की सुधि न जानै, पाती तोरि देहुरै आंनै ।
अरु पिथमीं का रोम उपारे, देखत जीव कोटि संहारै ।
मनमथ करम करै असराग, कलपत बिंद धसै तिहि
द्वारा ।
ताकी हत्या होइ अदभूता, षट दरसन मैं जैन बिगूता
।
ग्यान अमर पद बाहिरा, नेड़ा ही तैं दूरि ।
जिनि जान्याँ तिनि निकटि है, रांम रह्या सकल भरपूरि ।
आपन करता भये कुलाला, बहु बिधि सिष्टि रची दर
हाला ।
बिधना कुंभ कीये द्वै थाना, प्रतिबिंब ता मांहि
समाना?
बहुत जतन करि बानक, सौं मिलाय जीव तहाँ ठाँट
।
जठर अगनि दी कीं परजाली, ता मैं आप करै प्रतिपाली?
भीतर थैं जब बाहिर आवा, सिव सकती द्वै नाँव
धरावा?
भूलै भरमि परै जिनि कोई, हिंदू तुरक झूठ कुल दोई
।
घर का सुत जो होइ अयाना, ताके संगि क्यूँ जाइ
सयाना ।
सांची बात कहै जे वासूँ, सो फिरि कहै दिवाना तासू
।
गोप भिन्न है एकै दूधा, कासूँ कहिए बाम्हन सूधा
।
जिनि यहु चित्र बनाइया, सो साचा सतधार ।
कहै कबीर ते जन भले, जे चित्रवत लेहि बिचार ।5।
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