
बैल बने । हल में जुते । ले गाडी में दीन । तेली के कोल्हू रहे । पुनि घेर कसाई लीन । मांस कटा । बोटी बिकी । चमडन मढी नक्कार । कछुक करम बाकी रहे । तिस पर पडती मार । .. सतगुरु कबीर साहेब ।
एक बार की बात है । कबीर साहब एक गांव में गये । वहां उन्हें एक आदमी मिला । कबीर साहब ने कहा । भाई कब तक जगत जंजाल में पडा रहेगा । प्रभु का नाम ( गुरु द्वारा दिया गया नाम ) जपा कर । अपना आगा सुधार । आदमी बोला । कबीर साहब अभी मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं । जब इनकी शादियां हो जांय । तब नाम जपा करूंगा । काफ़ी समय बाद कबीर साहब फ़िर आय । बोले । अब तो नाम जपा कर । वह बोला । बच्चे तो बडे हो गये । इनकी शादियां भी हो गयीं । पर अभी इनके बच्चे छोटे छोटे हैं । ये बडे हो जांय । तब नाम जपूंगा । कबीर साहब चले गये । मगर अबकी बार जब आये । तो वह बूढा मर चुका था । उन्होंने पूछा । यहां एक बाबा रहते थे । वे कहां गये । घरवालों ने कहा । उन्हें तो मरे हुये बहुत समय हो गया । महाराज ।.. आत्मग्यानी कबीर साहब जानते थे कि उसका पुत्र । पोत्रों तथा और अन्य चीजों से बहुत मोह था । और ऐसा आदमी मरकर कहीं जाता नहीं । वरन माया मोहवश मरकर वहीं जनम लेता है । मनुष्य जन्म मिल सकता नहीं । अतः किसी पशु आदि योनि के रूप में वहीं होगा । उस बूढे को अपनी एक गाय से बेहद प्यार था । जब कबीर साहब ने अंतरध्यान होकर देखा । तो वह बूढा मरकर उसी गाय का बछडा बना था । ( मरने के बाद भी जीवात्मा का लिंग चेंज नहीं होता । स्त्री मादा रूप में । पुरुष नर रूप में ही जन्म लेगा । चाहे वे पशु । कीट । पतंगा कुछ भी क्यों न बनें । ) जब वह तीन साल का हुआ । तो अच्छा बैल बन गया । घरवालों ने उसे खेती कार्यों में खूब जोता । फ़िर उन्होंने उसे गाडीवान को बेच दिया । उसने भी उसे खूब जोता । जब वह गाडीवान के काम का भी ना रहा । तो उसने उसे एक कोल्हू चलाने वाले तेली को बेच दिया । बुडापा हो जाने के बाद भी तेली ने उसे खूब जोता । आखिर जब वह तेली के काम का भी ना रहा । तो उसने उसे एक कसाई को बेच दिया । कसाई ने पूरी निर्दयता से उसे जीवित ही काट डाला । और उसका मांस बोटी बोटी करके बेच दिया । बाकी बचा हुआ चमढा नगाढा मढने वाले ले गये । उन्होंने नगाडे पर मढकर उसे तब तक पीटा । जब तक वह फ़ट ना गया । इसी पर कबीर साहब ने कहा था । बैल बने । हल में जुते । ले गाडी में दीन । तेली के कोल्हू रहे । पुनि घेर कसाई लीन । मांस कटा । बोटी बिकी । चमडन मढी नक्कार । कछुक करम बाकी रहे । तिस पर पडती मार । .. सतगुरु कबीर साहेब । *** मेरी बात -- इसी प्रसंग पर मुझे एक बात याद आ गयी । जो सतसंग के दौरान किसी ने कही थी । बाबा । मैं.. । की पक्की तो बकरी होती है । जो मरते दम तक मैं नहीं छोडती ? मैंने कहा । हरेक को आखिर में । मैं.. छोडनी ही पडती है । बोला । बाबा कैसे ? बकरी जो मैं.. मैं करती है । आखिर तक मैं ना जाती है । गर्दन पर छुरी चलती है । पर मैं ही मैं चिल्लाती है ।..लेकिन..? उसी बकरी आंत की जब तांत बना ली जाती है । धुनिया जब उसको धुनता है । तो.. तूही तूही गाती है ।,,तांत क्या होती है ? ? ..पहले के समय में रजाई आदि में भरने के लिये जो रुई धुनी जाती थी । उसमें एक कमान में इसी तांत को रस्सी की जगह बांधकर धनुष की तरह बनाकर छ्त से लटका देते थे । फ़िर जब रुई के ढेर में उस यंत्र को हाथ से चलाते थे । तो उससे तूही तूही ..आवाज निकलती थी । मैंने इसको खूब देखा है । 40 या ऊपर के लोगों ने भी खूब देखा होगा ।
4 टिप्पणियां:
शायद पहली बार आया. सार्वकालिक कबीर पर कभी भी, कुछ भी पढ़ना रोचक और उपयोगी होता है.
meine is ghatna ko tv par story ke roop mein ek program me dekha tha... bahut achi kahani hai..
Merry Christmas
May this christmas will brings all happiness for you and your family.
Lyrics Mantra
सद्गुरु कबीर साहब के दोहे पर आधारित यह कहानी अच्छी लगी।
कबीर साहब के उपदेश तीनों कालों में प्रासंगिक और जीवनोपयोगी हैं।
साहेब, बंदगी साहेब।
बैल बने । हल में जुते । ले गाडी में दीन । तेली के कोल्हू रहे । पुनि घेर कसाई लीन । मांस कटा । बोटी बिकी । चमडन मढी नक्कार । कछुक करम बाकी रहे । तिस पर पडती मार ......
behtarin...koi shabd nahi mil raha...sant kabir ji ne samaaj ko kaphi karib se dekha tha...
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