(राग सूहौ)
तू सकल गहगरा । सफ सफा दिलदार दीदार ।
तेरी कुदरति किनहूँ न जानी, पीर मुरीद काजी मुसलमानी
।
देवौ देव सुर नर गण गंध्रप, ब्रह्मा देव महेसुर ।
तेरी कुदरति तिनहूँ न जांनी ।
काजी सो जो काया बिचारै, तेल दीप में बाती जारै ।
तेल दीप में बाती रहे, जोति चीन्हि जे काजी कहै
।
मुलना बंग देइ सुर जानी, आप मुसला बैठा तानी ।
आपुन में जे करै निवाजा, सो मुलना सरबत्तरि गाजा
।
सेष सहज में महल उठावा, चंद सूर बिचि तारौ लावा
।
अर्ध उर्ध बिचि आनि उतारा, सोई सेष तिहूँ लोक
पियारा ।
जंगम जोग बिचारै जहूँवाँ, जीव सिव करि एकै ठऊवाँ ।
चित चेतनि करि पूजा लावा, तेतौ जंगम नांउ कहावा ।
जोगी भसम करै भौ मारी, सहज गहै बिचार बिचारी ।
अनभै घट परचा सू बोलै, सो जोगी निहचल कदे न
डोले ।
जैन जीव का करहू उबारा, कौंण जीव का करहु उधारा
।
कहाँ बसै चौरासी मतै संसारी, तिरण तत ते लेहु बिचारी
।
प्रीति जानि राम जे कहै, दास नांउ सो भगता लहै ।
पंडित चारि वेद गुण गावा, आदि अंति करि पूत कहावा
।
उतपति परलै कहौ बिचारी, संसा घालौ सबै निवारी ।
अरधक उरधक ये संन्यासी, ते सब लागि रहै अबिनासी
।
अजरावर कौ डिढ करि गहै, सो संन्यासी उम्मन रहै ।
जिहि धर चाल रची ब्रह्मंडा, पृथमीं मारि करी नव खंडा
।
अविगत पुरिस की गति लखी न जाई, दास कबीर अगह रहे ल्यौ
लाई ।1।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें