बुधवार, अगस्त 11, 2010

अक्षर खण्ड रमैनी 2


धोखा प्रथम परखिये भाई, नाम जाति कुल कर्म बङाई ।
क्षिति जल पावक मरुत अकाश, ता महं पंच विषय परकाश ।
तत्व पांच में श्वासा सार, प्राण अपान समान उदार ।
और व्यान बाबन संचार, निजनिज थल निज कारज कार ।
इंगला पिंगला औ सुखमनी, इकइस सहस छौ सत सो गनी ।
निगम अगम औ सदा बतावे, श्वासा सार सरोदा गावे ।

धोखा अंधेरी पाय के, या विधि भया शरीर ।
कल्पेउ कारता एक पुनि, बढी कर्म की पीर । 5

योग्य जप तप ध्यान अलेख, तीरथ फ़िरत धरे बहु भेख ।
योगी जंगम सिद्ध उदास, घर को त्यागि फ़िरे बनबास ।
कन्दमूल फ़ल करत अहार, कोइ कोई जटा धरे शिर भार ।
मन मलीन मुख लाये धूर, आगे पीछे अग्नि औ सूर ।
नग्न होय नर खोरि न फ़िरे, पीतर पाथर में शिर धरे ।

काल शब्द के सोर ते, होर परी संसार ।
देखा देखी भागिया, कोई न करे विचार । 6

जब पुनि आय खसी यह बानि । तब पुनि चित्त मा कियो अनुमान ।
महीं ब्रह्म कर्ता जग केर, परे सो जाल जगत के फ़ेर ।
पांच तीन गुण जग उपजाया, सो माया मैं ब्रह्म निकाया ।
उपजे खपे जग विस्तारा, मैं साक्षी सब जाननिहारा ।
मो कह जानि सके नहि कोय, जौ पै विधि हरि शंकर होय ।
अस सन्धिक की परी बिकार, बिनु गुरु कृपा न होय उवार ।
मग्न ब्रह्म सन्धिक के ज्ञान, अस जानि अब भया भ्रम हान ।

संधि शब्द है भर्म मो, भूलि रहा कित लोग ।
परखेउ धोखा भेव नहि, अन्त होत बङ सोग । 7

जो कोई संधिक धोखा जान, सो पुनि उलटि कियो अनुमान ।
मन बुद्धि इन्द्रिय जाय न जान, निरबचनी सो सदा अमान ।
अकल अनीह अबाध अभेद, नेति नेति कै गावे बेद ।
सोऽहं वृत्ति अखंडित रहै, एक दोय अब को तहाँ कहै ।
जानि परी तब नित्याकार, झांईं सो भ्रम महा बेकार ।

संभव शब्द अमान जो, झांई प्रथम बेकार ।
परखेउ धोखा भेव निज, गुरु की दया उवार । 8

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।