बुधवार, अगस्त 11, 2010

अक्षर खण्ड रमैनी 4


भरम जीव परमातम माया, भरम देह औ भरम निकाया ।
अनहद नाद औ ज्योति प्रकास, आदि अन्त लौ भरम हि भास ।
इत उत करे भरम निरमान, भरम मान औ भरम अमान ।
कोहं जगत कहाँ से भया, ई सब भरम अती निरमया ।
प्रलय चारि भ्रम पुण्य औ पाप, मन्त्र जाप पूजा भ्रम थाप ।
बाट बाट सब भरम है, माया रची बनाय ।
(बाप पूत दोऊ भरम है, माया रची बनाय)
भेद बिना भरमे सकल, गुरु बिन कहाँ लखाय । 12

बाप पूत दोऊ भरम, आध कोश नव पांच ।
बिन गुरु भरम न छूटे, कैसे आवे सांच । 13

कलमा बांग निमाज गुजारै, भरम भई अल्लाह पुकारे ।
अजब भरम यक भई तमासा, ला मुकाम बेचून निवासा ।
बेनमून वह सबके पारा, आखिर ताको करौ दीदारा ।
रगरै महजिद नाक अचेत, निंदे बुत परस्त तेहि हेत ।
बाबन तीस बरन निरमाना, हिन्दू तुरक दोऊ भरमाना । 

भरमि रहे सब भरम महँ, हिन्दू तुरक बखान ।
कहहिं ‘कबीर’ पुकार कै, बिनु गुरु को पहिचान । 14

भरमत भरमत सबै भरमाने, रामसनेही बिरला जाने ।
तिरदेवा सब खोजत हारे, सुर नर मुनि नहि पावत पारे ।
थकित भया तब कहा बेअन्ता, विरहनि नारि रही बिनु कन्ता ।
कोटिन तरक करें मन माही, दिल की दुविधा कतहुं न जाही ।
कोई नख शिख जटा बढ़ावैं, भरमि भरमि सब जहँ तहँ धावैं ।
बाट न सूझै भई अंधेरी, होय रही बानी की चेरी ।
नाना पन्थ बरनि नहि जाई, जाति वरण कुल नाम बङाई ।
(जाति कर्म गुन नाम बङाई)
रैन दिवस वे ठाढ़े रहही, वृक्ष पहार काहि नहीं तरहीं ।

खसम न चीन्हे बाबरी, पर पुरुष लौ लीन ।
कहंहिं कबीर पुकार के, परी न बानी चीन । 15

कन रस की मतवाली नारि, कुटनी से खोजे लगवारि ।
कुटनी आँखिन काजर दियऊ, लागि बतावन ऊपर पियऊ ।
काजर ले के ह्वै गयी अन्धी, समुझ न परी बात की संधी ।
बाजे कुटनी मारे भटकी, ई सब छिनरो ता महं अटकी ।
विरहिन होय के देह सुखावै, कोई शिर महं केश बढ़ावै ।
मानि मानि सब कीन्ह सिंगारा, बिन पिय परसै सब अंगारा ।

अटकी नारि छिनारि सब, हरदम कुटनी द्वार ।
खसम न चीन्है बाबरी, घर घर फ़िरत खुवार । 16

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut hi acha likha hai aapne..
shukriya share karne k liye..

Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....

A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...

Banned Area News : Movie Review

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।