बुधवार, अगस्त 11, 2010

अक्षर खण्ड रमैनी


               ॥अक्षर खण्ड रमैनी॥

प्रथम शब्द है शून्याकार, परा अव्यक्त सो कहै विचार ।
अंतःकरण उदय जब होय, पश्यन्ति अर्धमात्रा सोय ।
स्वर सो कंठ मध्यमा जान, चौंतिस अक्षर मुख स्थान ।
अनवनि बानी तेहि के माहि, बिन जाने नर भटका खाहिं ।
बानी अक्षर स्वर समुदाय, अर्ध पश्यन्ति जात नसाय ।
शुन्याकार सो प्रथमा रहै, अक्षर ब्रह्म सनातन कहै ।
निवृति प्रवृति है शब्दाकार, प्रणव जाने इहे विचार ।

अंकुलाहट के शब्द जो, भई चार सो भेष ।
बहुबानी बहुरूप के, प्रथक प्रथक सब देश । 1

अनवनि बानी चार प्रकार, काल संधि झांई औ सार ।
हेतु शब्द बूझिये जोय, जानिय यथारथ द्वारा सोय ।
भ्रमिक झांई संधिक औ काल, सार शब्द काटे भ्रम जाल ।
द्वारा चार अर्थ परमान, पदारथ व्यंगाथ पहिचान ।
भावार्थ ध्वन्यार्थ चार, द्वारा शब्द कोई लखे विचार ।
परा पराइति मुख सो जान, मोरे सोरह कला निदान ।

बिन जानै सोरह कला, शब्द ही शब्द कौ आय ।
शब्द सुधार पहिचानिये, कौन कहा वौ आय । 2

अक्षर वेद पुराण बखान, धरम करम तीरथ अनुमान ।
अक्षर पूजा सेवा जाप, और महातम जेते थाप ।
यही कहावत अक्षर काल, जाए गडी उर होय के भाल ।
ओंऽहं सोंऽहं आतमराम, माया मन्त्रादिक सब काम ।
ये सब अक्षर संधि कहै, जेहि मा निसवासर जिव रहै ।
निर्गुण अलख अकह निर्वाण, मन बुद्धि इन्द्री जाय न जान ।
विधि निषेध जहँ बनिता दोय, कहैं कबीर पद झांईं सोय ।

प्रथमे झांईं झांकते, पैठा संधिक काल ।
पुनि झांईं की झांईं रही, गुरु बिन सके को टाल । 3

प्रथम ही संभव शब्द अमान, शब्द ही शब्द कियो अनुमान ।
मान महातम मान भुलान, मानत मानत बाबन ठान ।
फ़ेरा फ़िरत भयो भ्रमजाल, देहादिक जग भये विशाल ।
देह भई ते देहिक होय, जगत भई ते कर्ता कोय ।
कर्ता कारण कर्महि लाग, घर घर लोग कियो अनुराग ।
छौ दरशन वर्णश्रम चार, नौ छौ भये पाखंड बेकार ।
कोई त्यागी अनुरागी कोय, विधि निषेध मा बधिया दोय ।
कल्पेउ ग्रन्थ पुराण अनेक, भरमि रहै सब बिना विवेक ।

भरमि रहा सब शब्द में, सब्दी शब्द न जान ।
गुरु कृपा निज पर्ख बल, परखो धोखा ज्ञान । 4

कोई टिप्पणी नहीं:

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।