बुधवार, अगस्त 11, 2010

अक्षर खण्ड रमैनी 3


पहिले एक शब्द समुदाय, बाबन रूप धरे छितराय ।
इच्छा नारि धरे तेहि भेष, ताते ब्रह्मा विष्णु महेश ।
चारिउ उर पुरु बाबन जागे, पंच अठरह कंठहि लागे ।
तालू पंच शून्य सो आय, दश रसना के पूत कहाय ।
पांच अधर अधर ही मा रहै, शुन्ने कंठ समोधे वहै ।
ओठ कंठ ले प्रगटे ठौर, बोलन लागे और के और ।

एक शब्द समुदाय जो, जामे चार प्रकार ।
काल शब्द, संधि शब्द, झांई औ पुनि सार । 9

पांच तीनि नौ छौ औ चार, और अठारह करे पुकार ।
कर्म धर्म तीरथ के भाव, ई सब काल शब्द के दाव ।
सोऽहं आत्मा ब्रह्म लखाव, तत्वमसी मृत्युंजय भाव ।
पंचकोश नवकोश बखान, सत्य झूठ में करे अनुमान ।
ईश्वर साक्षी जाननिहार, ये सब संधिक कहै विचार ।
कारज कारण जहाँ न होय, मिथ्या को मिथ्या कहि सोय ।
बैन चैन नहि मौन रहाय, ई सब झांई दीन भुलाय ।
कोइ काहू का कहा न मान, जो जेहि भावे तहं अरुझान ।
परे जीव तेहि यम के धार, जौं लो पावे शब्द न सार ।
जीव दुसह दुख देखि दयाल, तब प्रेरी प्रभु परख रिसाल ।

परखाये प्रभु एक को, जामे चार प्रकार ।
काल संधि जांई लखी, लखी शब्द मत सार । 10

प्रथमे एक शब्द आरूढ़, तेहि तकि कर्म करे बहु मूढ़ ।
ब्रह्म भरम होय सब में पैठा, निरमल होय फ़िरे बहु ऐंठा ।
भरम सनातन गावे पांच, अटकि रहै नर भव की खांच ।
आगे पीछे दहिने बांयें, भरम रहा है चहुदिशि छाये ।
उठी भर्म नर फ़िरै उदास, घर को त्यागि कियो वनवास ।
भरम बढ़ी सिर केश बढ़ावे, तके गगन कोई बांह उठावे ।
द्वै तारी कर नासा गहै, भरमि क गुरु बतावे लहै ।
भरम बढ़ी अरु घूमन लागे, बिनु गुरु पारख कहु को जागे ।

कहैं कबीर पुकार के, गहहु शरण तजि मान ।
परखावे गुरु भरम को, वानि खानि सहिदानि । 11

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।