शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

मरते मरते जग मुआ


आगि जो लगी समुद्र में । टूटि टूटि षसे झोल ।
रोवै कबिरा डांफिया । मोर हीरा जरै अमोला ।

छौ दर्सन में जो परमाना । तासु नाम बनवारी ।
कहैं कबीर सब षलक सयाना । यामें हमहि अनारी ।

सांचै स्राप न लागै । सांचे काल न षाए ।
सांचहि साँचा जो चलै । ताको काह नसाए ।

पूरा साहेब सेइये । सब बिधि पूरा होए ।
वोछहि नेह लगाय के । मूलहु आयो षोए ।

जाहु बैद घर आपने । बात न पूछै कोए ।
जिन्ह यह भार लदाइया । निरवाहेगा सोए ।

औरन के सिषलावते । मोहडन पर गई रेत ।
रास बिरानी राषते । षाइनि घर का षेत ।

मैं चितवत हौं तोहि कौ । तू चितवत है वोहि ।
कहैं कबीर कैसे बनै । मोहिं तोहिं औ ओहि ।

ताकत तब तक तकि रहा । सको न बेझामार ।
सबै तीर षाली परै । चला कमानहिं डार ।

जस कथनी तस करनी । जस चुंबक तस ग्यान ।
कहैं कबीर चुंबक बिना । को जीते संग्राम ।

अपनी कहै मेरी सुनै । सुनि मिलि एकै होए ।
हमरे देषत जग गया । ऐसा मिला न कोए ।

देस विदेसै हौं फिरा । गाँव गाँव की षोर ।
ऐसा जियरा ना मिला । लेवें फटकि पछोर ।

मैं चितवत हौं तोहि को । तू चितवत कछु और ।
लानत ऐसे चित्त की । एक चित्त दुइ ठौर ।

चुंबक लोहे प्रीति है । लोहे लेत उठाए ।
ऐसा सब्द कबीर का । काल से लेहि छुडाए ।

भूला तो भूला, बहुरि के चेतना ।
बिस्मय की छुरी, संसय को रेतना ।

दोहरा कथित है कबीर, प्रतिदिन समय जो देषि ।
मुये गये नहिं बाहुरे, बहुरि न आये फेरि ।

गुरु बिचारा क्या करै सिष्यहि माहै चूक ।
भावै त्यों परमोधिये बांस बजावै फूक ।

दादा भाई बाप कै लेषो चरनन होइ हौ बंदा ।
अबकी पुरिया जो निरुवारे सो जन सदा अनंदा ।

सबसे लघुताई भली लघुता से सब होए ।
जस दुतिया को चन्द्रमा सीस नावै सब कोए ।

मरते मरते जग मुआ मरन न जाना कोय ।
ऐसा होके ना मुआ बहुरि न मरना होय ।

मरते मरते जग मुआ बहुरि न किया बिचार ।
एक सयानी आपनी परबस मुआ संसार ।

सब्द अहै गाहक नहीं वस्तुहि महँगे मोल ।
बिना दाम सो काम न आवै फिरै सो डामाडोल ।

गृही तजि के भये जोगी जोगी के गृह नाहि ।
बिना बिबेक भटकत फिरे पकरि सब्द की छाहिं ।

सिंह अकेला बन रमै पलक पलक करे दौर ।
जैसा बन है आपना वैसा बन है और ।

पैठा है घट भीतरे बैठा है साचेत ।
जब जैसी गति चाहै तब तैसी मति देत ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।