गिरही
सेवै साधु को, भाव भक्ति आनन्द।
कहै कबीर
वैरागि को, निरवानी निरदुंद॥
सब्द
विचारे पथ चले, ज्ञान गली दे पांव।
क्या
रमता क्या बैठता, क्या ग्रह कंदला छांव॥
जैसा
मीठा घृत पकै, तैसा फ़ीका साग।
राम
नाम सों राचहीं, कहै कबीर वैराग॥
पांच
सात सुमता भरी, गुरू सेवा चित लाय।
तब
गुरू आज्ञा लेय के, रहे दिसंतर जाय॥
गुरू
आज्ञा तें जो रमै, रमते तजै सरीर।
ताको
मुक्ति हजूर है, सदगुरू कहै कबीर॥
गुरू
के सनमुख जो रहै, सहै कसौटी दूख।
कहैं
कबीर ता दूख पर, बारौं कोटिक सूख॥
सतगुरू
अधम उधारना, दया सिंधु गुरू नाम।
गुरू
बिनु कोई न तरि सकै, क्या जप अल्लह राम॥
माला पहिरै
कौन गुन, मन दुविधा नहि जाय।
मन
माला करि राखिये, गुरूचरनन चित लाय॥
मन का
मस्तक मूंडि ले, काम क्रोध का केस।
जो
पांचौ परमौधि ले, चेला सबही देस॥
माला
तिलक बनाय के, धर्म विचारा नांहि।
माल
विचारी क्या करै, मैल रहा मन मांहि॥
माल
बनाई काठ की, बिच में डारा सूत।
माल
विचारी क्या करै, फ़ेरनहार कपूत॥
माल
तिलक तो भेष है, राम भक्ति कछु और।
कहै
कबीर जिन पहिरिया, पाँचौ राखै ठौर॥
माला
तो मन की भली, औ संसारी भेष।
माला
फ़ेरे हरि मिले, हरहट के गल देख।
मन
मैला तन ऊजला, बगुला कपटी अंग।
तासों
तो कौआ भला, तन मन एकहि रंग॥
कवि तो
कोटिन कोटि है, सिर के मूंङे कोट।
मन के
मूंङे देख करि, ता संग लीजै ओट॥
भेष
देखि मत भूलिये, बूझि लीजिये ज्ञान।
बिना
कसौटी होती नहीं, कंचन की पहिचान॥
फ़ाली
फ़ूली गाङरी, ओढ़ि सिंघ की खाल।
सांचा
सिंघ जब आ मिले, गाडर कौन हवाल॥
पांचौ
में फ़ूला फ़िरै, साधु कहावै सोय।
स्वान
न मेलै बाघरो, बाघ कहाँ से होय॥
बोली
ठाली मसखरी, हांसी खेल हराम।
मद
माया औ इस्तरी, नहि संतन के काम॥
भांड
भवाई खेचरी, ये कुल को बेवहार।
दया
गरीबी बंदगी, संतन का उपकार॥
दूध
दूध सब एक है, दूध आक भी होय।
बाना
देखि न बंदिये, नैना परखो सोय॥
बाना
देखी बंदिये, नहि करनी सों काम।
नीलकंठ
कीङा चुगै. दरसन ही सों काम॥
कबीर
भेष भगवंत का, माला तिलक बनाय।
उनकूं
आवत देखि के, उठि कर मिलिये धाय॥
गिरही
को चिंता घनी, वैरागी को भीख।
दोनों
का बिच जीव है, देहु न सन्तो सीख॥
वैरागी
बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।
दोउ
चूकि खाली पङै, ताको वार न पार॥
घर में
रहै तो भक्ति करूं, नातर करूं वैराग।
वैरागी
बंधन करै, ताका बङा अभाग॥
धारा
तो दोनों भली, गिरही कै वैराग।
गिरही
दासातन करै, वैरागी अनुराग॥
अजर जु
धान अतीत का, गिरही करै अहार।
निश्चै
होई दरिद्री, कहैं कबीर विचार॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें