भीख को
अंग
मांगन
मरन समान है, मति कोई मांगो भीख।
मांगन
ते मरना भला, यह सतगुरू की सीख॥
मांगन
मरन समान है, सीख दई मैं तोहि।
कहैं
कबीर सदगुरू सुनो, मति रे मंगाउ मोहि॥
मांगन
मरन समान है, तोहि दई मईं सीख।
कहैं
कबीर समुझाय के, मति कोई मांगै भीख॥
मांगन
गय सो मर रहे, मरै जु मांगन जांहि।
तिनते
पहिले वे मरे, होत करत हैं नांहि॥
उदर
समाता मांगि ले, ताको नाहीं दोष।
कहैं
कबीर अधिका गहि, ताकी गति ना मोष॥
अजहूं
तेरा सब मिटै, जो मानै गुरू सीख।
जब लग
तूं घर में रहै, मति कहुं मांगै भीख॥
उदर
समाता अन्न ले, तनहि समाता चीर।
अधिकहि
संग्रह ना करै, तिसका नाम फ़कीर॥
अनमांगा
तो अति भला, मांग लिया नहि दोष।
उदर
समाता मांगि ले, निश्चै पावै मोष॥
अनमांगा
उत्तिम कहा, मध्यम मांगि जु लेय।
कहै
कबीर निकृष्ट सो, पर घर धरना देय॥
सहज
मिलै सो दूध है, मांगि मिलै सो पानि।
कहैं
कबीर वह रकत है, जामें ऐंचातानि॥
आब गया
आदर गया, नैनन गया सनेह।
यह
तीनों तबही गये, जबहि कहा कछु देह॥
भीख
तीन परकार की, सुनहु संत चित लाय।
दास
कबीर परगट कहै, भिन्न भिन्न अरथाय॥
उत्तिम
भीख है अजगरी, सुनि लीजै निज बैन।
कहैं
कबीर ताके गहै, महा परम सुख चैन॥
भंवर
भीख मध्यम कही, सुनो संत चितलाय।
कहैं
कबीर ताके गहैं, मध्यम मांहि समाय॥
खर
कूकर की भीख जो, निकृष्ट कहावे सोय।
कहैं
कबीर इस भीख सें, मुक्ति कबहूं न होय॥
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