गुरुवार, जनवरी 12, 2012

संगति को अंग 3

साखि सब्द बहुतहि सुना, मिटा न मन का मोह।
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह॥

माखी चंदन परिहरे, जहँ रस मिलि तहँ जाय।
पापी सुनै न हरिकथा, ऊंधे कै उठि जाय॥

पुरब जनम के भाग से, मिले संत का जोग।
कहैं कबीर समुझै नहीं, फ़िर फ़िर, चाहै भोग॥

जहाँ जैसी संगति करैं, तहँ तैसा फ़ल पाय।
हरि मारग तो कठिन है, क्यौं करि पैठा जाय॥

ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट।
ज्ञानी अज्ञानी मिल, होवै माथा कूट॥

सज्जन सों सज्जन मिले, होवे दो दो बात।
गदहा सों गदहा मिले, खाबे दो दो लात॥

मैं मांगूं यह मांगना, मोहि दीजिये सोय।
संत समागम हरिकथा, हमरे निसदिन होय।

कंचन भौ पारस परसि, बहुरि न लोहा होय।
चंदन बास पलास बिधि, ढाक कहै न कोय॥

पहिले पट पासै बिना, बीघे पङै न भात।
पासै बिन लागे नहीं, कुसुँभ बिगारै साथ॥

कबीर सतगुरू सेविये, कहा साधु को रंग।
बिन बगुरे भिगोय बिना, कोरै चङै न रंग॥

कबीर विषधर बहु मिले, मनिधर मिला न कोय।
विषधर को मनिधर मिले, विषधर अमृत होय॥

प्रीति करो सुख लेन को, सो सुख गयो हिराय।
जैसे पाई छछुंदरी, पकङि सांप पछिताय॥

जो छोङै तो आंधरा, खाये तो मरि जाय।
ऐसे खंध छछुंदरी, दोउ भांति पछताय॥

सांप छछुंदर दोय कूं, नौला नीगल जाय।
वाकूं विष बेङै नहीं, जङी भरोसे खाय॥

कूसंगति लागे नहीं, सब्द सजीवन हाथ।
बाजीगर का बालका, सोवै सरपकि साथ॥

पानी निरमल अति घना, पल संगे पल भंग।
ते नर निस्फ़ल जायेंगे, करै नीच को संग॥

निगुनै गांव न बासिये, सब गुन को गुन जाय।
चंदन पङिया चौक में, ईंधन बदले जाय॥

संगति को वैरी घनो, सुनो संत इक बैन।
येही काजल कोठरी, येही काजल नैन॥

साधू संगति परिहरै, करै विषय को संग।
कूप खनी जल बाबरे, त्यागि दिया जल गंग॥

अनमिलता सों संग करि, कहा बिगोयो आप।
सत्त कबीर यों कहत है, ताहि पुरबलो पाप॥

लकङी जल डूबै नहीं, कहो कहाँ की प्रीति।
अपनो सींचो जानि के, यही बङन की रीति॥

मैं सींचो हित जानि के, कठिन भयो है काठ।

ओछी संगति नीच की, सिर पर पाङी वाट॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।