चंदन
परसा बावना, विष ना तजै भुजंग।
यह
चाहै गुन आपना, कहा करै सतसंग॥
कबीर
चंदन के निकट, नीम भि चंदन होय।
बूङे
बांस बङाइया, यौं जनि बूङो कोय॥
चंदन
जैसे संत हैं, सरप जैसा संसार।
वाके
अंग लिपटा रहै, भागै नही विकार॥
चंदन
डर लहसुन करै, मति रे बिगारै बास।
सगुरा
निगुरा सों डरै, जग से डरपै दास॥
कबीर
कुसंग न कीजिये, लोहा जल न तिराय।
कदली
सीप भुजंग मुख, एक बूंद तिर भाय॥
कबीर
कुसंग न कीजिये, जाका नांव न ठांव।
ते
क्यौं होसी बापरा, साध नहि जिहि गांव॥
कबीर
गुरू के देस में, बसि जानै जो कोय।
कागा
ते हंसा बनै, जाति बरन कुल खोय॥
कबीर
कहते क्यों बने, अनबनता के संग।
दीपक
को भावै नहीं, जरि जरि मरैं पतंग॥
ऊजल
बुंद अकास की, पङि गइ भूमि बिकार।
माटी
मिलि भई कीच सों, बिन संगति भौ छार॥
हरिजन
सेती रूठना, संसारी सों हेत।
ते नर
कबहु न नीपजे, ज्यौं कालर का खेत॥
गिरिये
परबत सिखर ते, परिये धरनि मंझार।
मूरख
मित्र न कीजिये, बूङो काली धार॥
मूरख
को समझावते, ज्ञान गांठि का जाय।
कोयला
होय न ऊजल, सौ मन साबुन लाय॥
कोयला
भि होय ऊजल, जरि बरि ह्वै जो सेत।
मूरख
होय न ऊजला, ज्यौं कालर का खेत॥
संगति
अधम असाधु की, मीच होय ततकाल।
कहैं
कबीर सुन साधवा, बानी ब्रह्म रसाल॥
मेर
निसानी मीच की, कूसंगति ही काल।
कहैं
कबीर सुन प्रानिया, बानी ब्रह्म संभाल॥
ऊंचे
कुल कह जनमिया, करनी ऊंच न होय।
कनक
कलस मद सों भरा, साधुन निंदा सोय॥
जानि
बूझ सांची तजै, करै झूठ सों नेह।
ताकी
संगति रामजी, सपनेहू मति देह॥
काचा
सेती मति मिलै, पाका सेती बान।
काचा
सेती मिलत ही, ह्वै तन धन की हान॥
तोहि
पीर जो प्रेम की, पाका सेती खेल।
काची
सरसों पेलि के, खरी भया नहिं तेल॥
कुल टूटै
कांची पङी, सरा न एकौ काम।
चौरासी
वासा भया, दूर पङा हरिनाम॥
दाग जु
लागा नील का, सौ मन साबुन धोय।
कोटि
जतन परमौधिये, कागा हंस न होय॥
जग सों
आपा राखिये, ज्यौं विषहर सो अंग।
करो
दया जो खूब है, बुरा खलक का संग॥
जीवन
जोवन राजमद, अविचल रहै न कोय।
जु दिन
जाय सतसंग में, जीवन का फ़ल सोय॥
ब्राह्मन
केरी बेटिया, मांस शराब न खाय।
संगति
भई कलाल की, मद बिन रहा न जाय॥
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