टेक न
कीजै बाबरे, टेक माहि है हानि।
टेक
छाङि मानक मिले, सदगुरू वचन प्रमान॥
टेक
करै सो बाबरा, टेकै होवै हानि।
जा
टेकै साहिब मिले, सोई टेक परमान॥
साकट
संग न बैठिये, अपनो अंग लगाय।
तत्व
सरीरां झङि पङै, पाप रहै लपटाय॥
साकट
संग न बैठिये, करन कुबेर समान।
ताके
संग न चालिये, पङिहै नरक निदान॥
साकट
ब्राह्मन मति मिलो, वैस्नव मिलु चंडाल।
अंग
भरै भरि बैठिये, मानो मिले दयाल॥
साकट
सन का जेवरा, मीजै सो करराय।
दो
अच्छर गुरू बाहिरा, बांधा जमपुर जाय॥
साकट
से सूकर भला, सूचौ राखै गांव।
बूङौ
साकट बापुरा, वाइस भरमी नांव॥
साकट
हमरै कोऊ नहि, सबही वैस्नव झारि।
संशय
ते साकट भया, कहैं कबीर विचारि॥
साकट
ब्राह्मन सेवरा, चौथा जोगी जान।
इनको
संग न कीजिये, होय भक्ति में हान॥
साकट
संग न जाइये, दे मांगा मोहि दान।
प्रीत
संगाती ना मिलै, छाङै नहि अभिमान॥
साकट
नारी छांङिये, गनिका कीजै नारि।
दासी
ह्वै हरि जनन की, कुल नही आवै गारि॥
साकट
ते संत होत है, जो गुरू मिले सुजान।
राम
नाम निज मंत्र है, छुङवै चारों खान॥
कबीर
साकट की सभा, तू मति बैठे जाय।
एक
गुवाडै कदि बङै, रोज गदहरा गाय॥
मैं
तोही सों कब कह्या, साकट के घर जाव।
बहती
नदिया डूब मरूं, साकट संग न खाव॥
संगति
सोई बिगुर्चई, जो है साकट साथ।
कंचन
कटोरा छांङि कै, सनहक लीन्ही हाथ॥
सूता
साधु जगाइये, करै ब्रह्म को जाप।
ये
तीनों न जगाइये, साकट सिंह अरु सांप॥
आँखौं
देखा घी भला, ना मुख मेला तेल।
साधु
सों झगङा भला, ना साकट सों मेल॥
घर में
साकट इस्तरी, आप कहावै दास।
ओ तो
होयगी सूकरी, वह रखवाला पास॥
खसम
कहावै वैस्नव, घर में साकट जोय।
एक घरा
में दो मता, भक्ति कहाँ ते होय॥
एक
अनूपम हम किया, साकट सों बेवहार।
निंदा
साटि उजागरो, कीयो सौदा सार॥
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