बरस
बरस नहि करि सकै, ताको लागे दोष।
कहै
कबीरा जीव सो, कबहु न पावै मोष॥
मात
पिता सुत इस्तरी, आलस वधू कानि।
साधु
दरस को जब चलै, ये अटकावै आनि॥
इन
अटकाया ना रहै, साधु दरस को जाय।
कहैं
कबीर सोई संतजन, मोक्ष मुक्ति फ़ल पाय॥
साधु
चलत रो दीजिये, कीजै अति सनमान।
कहै
कबीर कछु भेंट धरु, अपने बित अनुमान॥
खाली
साधु न विदा करु, सुनि लीजो सब कोय।
कहै
कबीर कछु भेंट धरु, जो तेरे घर होय॥
मोहर
रुपैया पैसा, छाजन भोजन देय।
कह
कबीर सो जगत में, जनम सफ़ल करि लेय॥
हाथी
घोङा गाय भैंस, रथ अरु गाङी भवन।
कबीर
दीजै साधु को, कीया चाहै गवन॥
बेटा
बेटी इस्तरी, साधु चहै सो देय।
सिर
साधु के अरपही, जनम सुफ़ल करि लेय॥
कबीर
दरसन साधु के, खाली हाथ न जाय।
यही
सीख बुधि लीजिये, कहैं कबीर समुझाय॥
सुनिये
पार जु पाइया, छाजन भोजन आनि।
कहैं
कबीरा साधु को, देत न कीजै कानि॥
कबीर
लौंग इलायची, दातुन माटी पानि।
कहैं
कबीरा साधु को, देत न कीजै कानि॥
टूका
माहीं टूक दे, चीर मांहि सों चीर।
साधू
देत न सकुचिये, यौं कहैं सत्त कबीर॥
कंचन
दीया करन ने, द्रौपदी दीया चीर।
जो
दीया सो पाइया, ऐसे कहैं कबीर॥
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